सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केरल के राज्यपाल और कुलाधिपति राजेंद्र अर्लेकर को कड़ी फटकार लगाई और पूछा कि उन्होंने जस्टिस सुधांशु धुलिया समिति की रिपोर्ट पर अब तक कोई निर्णय क्यों नहीं लिया। अदालत ने कहा कि यह “साधारण कागज़ का टुकड़ा नहीं है” और राज्यपाल को एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट पर फैसला लेने का निर्देश दिया।
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ के समक्ष राज्य सरकार ने शिकायत की कि मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने जस्टिस धुलिया समिति की रिपोर्ट के आधार पर दो विश्वविद्यालयों—एपीजे अब्दुल कलाम टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ डिजिटल साइंसेज़, इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी—में कुलपति नियुक्ति के लिए अपनी सिफारिशें भेज दी थीं, लेकिन राज्यपाल ने अब तक कोई निर्णय नहीं लिया।
अदालत ने कहा,
“रिपोर्ट मुख्यमंत्री को भेजी गई थी और मुख्यमंत्री ने उसे कुलाधिपति को भेज दिया है। अब कुलाधिपति से अपेक्षा है कि वह रिपोर्ट को देखें और उस पर निर्णय लें।”
राज्यपाल की ओर से पेश वकील ने कहा कि रिपोर्ट और मुख्यमंत्री का पत्र तो प्राप्त हो गया है, लेकिन सुझाए गए नामों से संबंधित रिकॉर्ड अभी नहीं मिला है।
पीठ ने इस दलील को सिरे से ख़ारिज कर दिया।
जस्टिस पारदीवाला ने कहा,
“हमें समझ नहीं आता कि रिकॉर्ड न मिलने से रिपोर्ट देखने में क्या बाधा है। यह साधारण कागज़ का टुकड़ा नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश ने इसे तैयार किया है। यह क़ानून का हिस्सा है, और आपको इसे देखकर निर्णय लेना ही होगा।”
अदालत ने राज्यपाल के वकील से कहा कि वे कोर्टरूम के बाहर जाकर स्पष्ट निर्देश प्राप्त करें कि निर्णय कब तक लिया जाएगा।
जब वकील ने “कुछ मुद्दों पर विचार करने की जरूरत” की बात कही, तो अदालत ने उन्हें रोका।
“हम और बहस नहीं सुनेंगे… जब आपका निर्णय हमारे सामने आएगा, तभी हम देखेंगे कि वह सही है या गलत,” जस्टिस पारदीवाला ने कहा।
अब यह मामला 5 दिसंबर को फिर सुना जाएगा।
राज्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने कहा कि उनकी जानकारी के अनुसार, सभी आवश्यक दस्तावेज़ कुलाधिपति को भेज दिए गए हैं।
सुनवाई की शुरुआत में ही गुप्ता ने कहा कि मुख्यमंत्री की सिफारिश और धुलिया समिति रिपोर्ट भेजे जाने के बावजूद राज्यपाल ने कोई कदम नहीं उठाया।
कुलपति नियुक्ति को लेकर राज्य सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे टकराव को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त को जस्टिस सुधांशु धुलिया (सेवानिवृत्त) को समिति प्रमुख नियुक्त किया था। यह समिति सभी पक्षों की सहमति से बनाई गई थी।
जस्टिस धुलिया, जो 9 अगस्त को सेवानिवृत्त हुए, ने आवश्यक प्रक्रिया पूरी कर अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी।
उधर, राज्यपाल ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कुलपति चयन प्रक्रिया से मुख्यमंत्री की भूमिका हटाने की मांग की है। उनका कहना है कि संबंधित विश्वविद्यालयों के कानून में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं है।
राज्यपाल ने एक अन्य मामले में केरल हाईकोर्ट के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसमें प्रोफेसर के. शिवप्रसाद की कुलपति नियुक्ति से जुड़ी अधिसूचना पर सवाल उठाया गया था। राज्य सरकार का कहना है कि अधिसूचना “आगामी आदेश तक” नियुक्ति बताती है, जबकि 2015 अधिनियम की धारा 13(7) के अनुसार अंतरिम नियुक्ति छह महीने से अधिक नहीं हो सकती।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा है कि राज्यपाल को अब एक सप्ताह के भीतर धुलिया समिति रिपोर्ट पर अंतिम निर्णय लेना होगा।
रिपोर्ट पर लिया गया निर्णय 5 दिसंबर को अदालत के समक्ष रखा जाएगा, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट उसकी वैधता की समीक्षा करेगा।




