समझौता होने पर SC/ST एक्ट का केस रद्द, लेकिन पीड़ित को लौटाना होगा सरकारी मुआवजा: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामला निजी प्रकृति का है और अपराध जातिगत आधार पर नहीं किया गया है, तो उसे पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द (Quash) किया जा सकता है।

न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव की पीठ ने राहुल गुप्ता और 6 अन्य बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले में यह आदेश दिया। हालांकि, राहत देते समय कोर्ट ने शिकायतकर्ता को निर्देश दिया कि वह राज्य सरकार से प्राप्त मुआवजा राशि को वापस जमा करे।

मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ता राहुल गुप्ता और अन्य के खिलाफ मेरठ के ब्रह्मपुरी थाने में केस क्राइम नंबर 0126/2024 दर्ज किया गया था। उन पर भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 147 (दंगा), 323 (मारपीट), 500 (मानहानि), 504, 506 और SC/ST एक्ट की धारा 3(2)(va) के तहत आरोप लगाए गए थे।

अभियुक्तों ने विशेष न्यायाधीश (SC/ST एक्ट), मेरठ द्वारा जारी आरोप पत्र (30 अप्रैल 2024) और समन आदेश (19 जुलाई 2024) को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।

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पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ताओं के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि दोनों पक्षों के बीच विवाद सुलझ गया है और उन्होंने आपसी सहमति से समझौता कर लिया है। यह तर्क दिया गया कि शिकायतकर्ता ने बिना किसी दबाव या अनुचित प्रभाव (Undue Influence) के अपनी मर्जी से समझौता किया है।

कोर्ट के पूर्व आदेश के अनुपालन में, विशेष न्यायाधीश (SC/ST एक्ट), मेरठ ने 4 दिसंबर 2024 को समझौते का सत्यापन किया था। हालांकि, जिलाधिकारी मेरठ की रिपोर्ट से यह खुलासा हुआ कि शिकायतकर्ता (विपक्षी संख्या 2) ने अभी तक सरकार से प्राप्त मुआवजा राशि वापस नहीं की है।

कोर्ट का विधिक दृष्टिकोण

मामले की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने कहा कि रिकॉर्ड देखने से यह स्पष्ट होता है कि विवाद पूरी तरह से निजी प्रकृति का है। प्रथम दृष्टया (Prima facie) यह प्रतीत होता है कि अपराध पीड़ित की जाति को आधार बनाकर नहीं किया गया था।

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कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले रामअवतार बनाम मध्य प्रदेश राज्य (2022) 13 SCC 635 का हवाला दिया। इस फैसले में शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि यदि अपराध मुख्य रूप से दीवानी या निजी प्रकृति का है, तो SC/ST एक्ट के तहत भी कार्यवाही रद्द की जा सकती है, बशर्ते समझौता स्वैच्छिक हो।

इसके अलावा, हाईकोर्ट ने गुलाम रसूल खान बनाम यूपी राज्य [2022 (8) ADJ 691] के फुल बेंच फैसले का भी उल्लेख किया, जिसमें यह तय किया गया था कि SC/ST एक्ट के तहत धारा 14-A(1) में अपील के माध्यम से मामले में समझौता किया जा सकता है और इसके लिए धारा 482 Cr.P.C. का सहारा लेने की आवश्यकता नहीं है।

फैसला और निर्देश

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चूंकि निचली अदालत ने समझौते का सत्यापन कर दिया था और कोर्ट ने पाया कि समझौता बिना किसी जोर-जबरदस्ती के किया गया है, इसलिए हाईकोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली। कोर्ट ने सत्र परीक्षण संख्या 892/2024 की समस्त कार्यवाही, जिसमें आरोप पत्र और समन आदेश शामिल हैं, को निरस्त कर दिया।

हालांकि, कोर्ट ने सरकारी धन के दुरुपयोग को रोकने के लिए एक सख्त शर्त लगाई। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा:

“विपक्षी संख्या 2 (शिकायतकर्ता) को निर्देश दिया जाता है कि वह संबंधित प्राधिकरण से प्राप्त मुआवजा राशि आज से एक सप्ताह के भीतर वापस करे।”

यह निर्णय 4 नवंबर 2025 को सुनाया गया।

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