धारा 12(3) के तहत बेदखली आदेश के खिलाफ अपील में धारा 12 की प्रक्रिया को दोहराना अनिवार्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में स्पष्ट किया है कि जब कोई किराएदार केरल भवन (पट्टा और किराया नियंत्रण) अधिनियम, 1965 की धारा 12(3) के तहत पारित बेदखली आदेश को चुनौती देता है, तो मकान मालिक को रेंट कंट्रोल अपीलेट अथॉरिटी (अपीलीय प्राधिकरण) के समक्ष धारा 12(1) के तहत नया आवेदन दाखिल करने की आवश्यकता नहीं है।

जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने 21 नवंबर, 2025 को दिए अपने फैसले में केरल हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि मकान मालिक द्वारा नया आवेदन दिए बिना अपीलीय प्राधिकरण कार्यवाही पर रोक नहीं लगा सकता। शीर्ष अदालत ने टिप्पणी की कि कानून की ऐसी व्याख्या करना जो प्रक्रिया को दोहराने की मांग करे, वह संक्षिप्त प्रक्रिया (summary procedure) के उद्देश्य को विफल कर देगी और “बेतुके व अन्यायपूर्ण” परिणाम देगी।

मामले की पृष्ठभूमि

यह मामला पी.यू. सिद्दीक और अन्य बनाम ज़कारिया (सिविल अपील संख्या 13901-13902/2025) से संबंधित है। विवाद कोच्चि शहर के मुख्य स्थान पर स्थित दो दुकानों को लेकर था, जिसे प्रतिवादी-किराएदार ने किराए पर लिया था। याचिकाकर्ता-मकान मालिकों का आरोप था कि किराएदार ने वर्ष 2020 की शुरुआत से किराया नहीं चुकाया है।

मकान मालिकों ने अधिनियम के तहत बेदखली याचिकाएं (आरसीपी संख्या 187 और 188, वर्ष 2020) दायर कीं। इसके अलावा, बकाया वसूली के लिए दायर एक दीवानी मुकदमे (ओ.एस. संख्या 71/2021) में भी मार्च 2023 में मकान मालिकों के पक्ष में डिक्री पारित की गई, जिसमें किराएदार को 26,44,614 रुपये (ब्याज और लागत सहित) का भुगतान करने का आदेश दिया गया था। यद्यपि किराएदार ने इस डिक्री के खिलाफ अपील की है, लेकिन डिक्री पर कोई रोक (stay) नहीं है।

25 सितंबर, 2024 को रेंट कंट्रोलर ने धारा 12(1) के तहत आदेश पारित करते हुए किराएदार को एक मामले में 57 लाख रुपये से अधिक और दूसरे में 36 लाख रुपये से अधिक का बकाया चुकाने का निर्देश दिया। किराएदार द्वारा अनुपालन न करने पर, रेंट कंट्रोलर ने 7 नवंबर, 2024 को धारा 12(3) के तहत आगे की कार्यवाही रोक दी और किराएदार को मकान मालिक को कब्जा सौंपने का आदेश दिया।

READ ALSO  वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा का भरा पर्चा

किराएदार ने इस आदेश को रेंट कंट्रोल अपीलेट अथॉरिटी के समक्ष धारा 18 के तहत चुनौती दी। अपीलीय प्राधिकरण ने 11 मार्च, 2025 को निर्देश दिया कि अपील सुनने की पूर्व-शर्त के रूप में किराएदार को स्वीकृत किराया जमा करना होगा। जब किराएदार ऐसा करने में विफल रहा, तो अपीलीय प्राधिकरण ने अपील की सुनवाई रोक दी और बेदखली आदेशों के अनुपालन का निर्देश दिया।

हालांकि, केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ ने पुनरीक्षण याचिकाओं (Revision Petitions) में अपीलीय प्राधिकरण के आदेश को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट का कहना था कि अपीलीय अदालत के समक्ष धारा 12(1) के तहत कोई विशिष्ट आवेदन दायर किए बिना, रेंट कंट्रोल कोर्ट के आदेशों के आधार पर कार्यवाही को रोका नहीं जा सकता।

पक्षों की दलीलें

मकान मालिकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री वी. चितंबरेश ने तर्क दिया कि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के मानिक लाल मजूमदार और अन्य बनाम गौरांग चंद्र डे और अन्य (2005) के तीन-जजों की पीठ के फैसले द्वारा कवर किया गया है। उन्होंने दलील दी कि “अपील करने” (prefer an appeal) का अर्थ ही यह है कि स्वीकृत बकाया का भुगतान या जमा करना एक पूर्व-शर्त है। उन्होंने बताया कि कुल बकाया राशि लगभग 1.45 करोड़ रुपये है।

इसके विपरीत, प्रतिवादी-किराएदार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता श्री पी.बी. कृष्णन ने तर्क दिया कि धारा 12 के तहत शक्ति कठोर है और इसका प्रयोग निर्धारित प्रक्रिया का पालन करते हुए संक्षिप्त तरीके से किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि चूंकि यह शक्ति समवर्ती (concurrent) है, इसलिए अपीलीय प्राधिकरण को धारा 12 के तहत पूरी प्रक्रिया का फिर से पालन करना चाहिए—यानी एक नया आवेदन, नोटिस और कारण बताओ अवसर दिया जाना चाहिए। उन्होंने अपने तर्क के समर्थन में केरल हाईकोर्ट की पूर्ण पीठ (Full Bench) के फैसले * जीनत इब्राहिम और अन्य बनाम जॉय डेनियल* (2024) का हवाला दिया।

READ ALSO  CrPC की धारा 4 और 5 वहाँ लागू नहीं होगी जहां शिकायतकर्ता द्वारा एनआई एक्ट में शिकायत दायर नहीं की गयी है: इलाहाबाद हाईकोर्ट

कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ

सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के तर्क को खारिज करते हुए कहा कि गहरे स्तर पर मुद्दा यह है कि “क्या कानूनों की व्याख्या न्याय की शक्ति के रूप में की जानी चाहिए या नहीं।”

अपील में धारा 12 की व्याख्या

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि धारा 12(1) और 12(3) की प्रक्रिया का पालन मुख्य रूप से रेंट कंट्रोलर द्वारा किया जाना है। हालांकि अपीलीय प्राधिकरण के पास बाद की घटनाओं (जैसे अपील के दौरान और किराया बकाया होना) के मामलों में धारा 12(1) के तहत नया आवेदन स्वीकार करने की शक्ति है, लेकिन धारा 12(3) के तहत पारित बेदखली आदेश का परीक्षण करते समय पूरी प्रक्रिया को दोहराना अनिवार्य नहीं है।

जस्टिस मनमोहन ने पीठ के लिए निर्णय लिखते हुए कहा:

“प्रतिवादी-किराएदार की यह दलील कि धारा 12(3) के तहत बेदखली आदेश को चुनौती देने वाली अपील में धारा 12(1) के तहत नया आवेदन अनिवार्य है, अधिनियम की धारा 12 और 18 की स्पष्ट भाषा के विपरीत है।”

कोर्ट ने कहा कि अपीलीय प्राधिकरण कोई ‘प्रथम दृष्टया अदालत’ (court of first instance) नहीं है जिसे डिफॉल्ट के मुद्दे को फिर से निर्धारित करना हो, बल्कि यह रेंट कंट्रोल कोर्ट के क्षेत्राधिकार के प्रयोग का परीक्षण करने के लिए है।

READ ALSO  दिल्ली की अदालत ने मानहानि मामले में राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत को बरी करने से इनकार कर दिया है

बेतुकेपन (Absurdity) के खिलाफ तर्क

कोर्ट ने हाईकोर्ट के दृष्टिकोण की आलोचना करते हुए कहा कि इससे “बेतुका और अन्यायपूर्ण परिणाम” निकलेगा। कोर्ट ने इसकी तुलना सीपीसी (CPC) के अन्य प्रावधानों से करते हुए कहा कि यह अपीलीय अदालत के समक्ष आदेश XII नियम 6 या आदेश VII नियम 11 के तहत नया आवेदन मांगने जैसा होगा।

“इस न्यायालय का मत है कि न्याय प्रशासन का जिम्मा मनुष्यों को सौंपा गया है, न कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) या कंप्यूटर को; इसलिए कानूनों की व्याख्या सहानुभूति और व्यावहारिकता के साथ तथा न्याय की शक्ति के रूप में की जानी चाहिए, न कि बेतुकेपन के रूप में।”

निर्णय

सुप्रीम कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि किराएदार ने प्रक्रियात्मक दलीलों का सहारा लेकर कोच्चि में दो प्रमुख दुकानों पर पिछले पांच वर्षों से “बिना एक पैसा चुकाए” कब्जा जमाए रखा है।

न्यायालय ने केरल हाईकोर्ट की खंडपीठ के 22 मई, 2025 के निर्णय को रद्द कर दिया और अपीलीय प्राधिकरण के 19 मार्च, 2025 के निर्णय को बहाल कर दिया।

प्रतिवादी-किराएदार को निर्देश दिया गया कि वह 31 दिसंबर, 2025 तक या उससे पहले दुकानों का खाली कब्जा मकान मालिकों को सौंप दे, बशर्ते वह दो सप्ताह के भीतर बकाया भुगतान करने का वचन (undertaking) दाखिल करे। कोर्ट ने आदेश दिया:

“यदि निर्धारित समय के भीतर वचन दाखिल नहीं किया जाता है, तो अपीलकर्ता-मकान मालिकों को 19 मार्च, 2025 की बेदखली डिक्री को तत्काल निष्पादित करने की स्वतंत्रता होगी।”

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles