उत्तराखंड हाईकोर्ट ने टिहरी गढ़वाल के जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा 11 वर्ष पहले पारित उस आदेश को रद्द कर दिया है, जिसमें एक पुलिस अधिकारी के वेतन से 500 रुपये काटकर एक आरोपी को देने का निर्देश दिया गया था।
न्यायमूर्ति आलोक महारा ने कहा कि किसी भी सरकारी कर्मचारी पर वेतन कटौती जैसे दंडात्मक कदम बिना सुनवाई का अवसर दिए नहीं थोपे जा सकते। अदालत ने इस आदेश को “अयुक्तिसंगत” और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के विपरीत बताया।
यह मामला पुलिस उप-निरीक्षक सरिता शाह द्वारा दायर याचिका से जुड़ा है, जो 2013 के एक दुष्कर्म मामले में जांच अधिकारी थीं। अगस्त 2013 में टिहरी गढ़वाल जिला बाल कल्याण समिति की सदस्य प्रभा रतूरी ने शिकायत दर्ज कराते हुए आरोप लगाया था कि एक व्यक्ति ने अपनी ही बेटी के साथ दुष्कर्म किया।
जांच के बाद सरिता शाह ने दो आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 376 और 506 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया। बाद में सत्र अदालत ने दोनों आरोपियों को बरी कर दिया।
नवंबर 2013 में बरी करने के दौरान सत्र न्यायाधीश ने टिप्पणी की कि एक आरोपी को “गलत तरीके से जेल भेजा गया” और इसके लिए जांच अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया। अदालत ने सीआरपीसी की धारा 358 का हवाला देते हुए आरोपी को 500 रुपये क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया और टिहरी गढ़वाल के एसपी को निर्देश दिया कि यह राशि सरिता शाह के वेतन से काटकर दी जाए।
हाईकोर्ट में सरिता शाह ने तर्क दिया कि:
- सीआरपीसी की धारा 358 किसी जांच अधिकारी के खिलाफ लागू नहीं हो सकती।
- यदि गिरफ्तारी बाद में अनुचित पाए भी जाए, तो क्षतिपूर्ति का आदेश केवल मजिस्ट्रेट ही दे सकता है, सत्र न्यायाधीश नहीं।
- वेतन कटौती एक दंडात्मक कार्रवाई है, जिसे बिना सुनवाई किए लागू नहीं किया जा सकता।
- सत्र न्यायाधीश की टिप्पणियाँ उनके सेवा अभिलेख को प्रभावित करती हैं, लेकिन उन्हें सफाई का अवसर नहीं दिया गया।
न्यायमूर्ति महारा ने इन दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि निचली अदालत ने बिना प्रक्रिया का पालन किए दंडात्मक आदेश पारित किया, जो प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है।
अदालत ने स्पष्ट किया कि किसी सरकारी कर्मचारी के वेतन, सेवा रिकॉर्ड या प्रतिष्ठा को प्रभावित करने वाला कोई भी दंड तभी लगाया जा सकता है जब उसे उचित अवसर दिया जाए। इस मामले में ऐसा नहीं किया गया।
हाईकोर्ट ने:
- वेतन से 500 रुपये कटौती का आदेश रद्द किया, और
- सत्र न्यायाधीश द्वारा की गई आपत्तिजनक टिप्पणियाँ भी निरस्त कर दीं।
इस फैसले से सरिता शाह का सेवा रिकॉर्ड बहाल हो गया है और यह सिद्धांत मजबूत हुआ कि बिना सुनवाई किसी भी कर्मचारी पर दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती।




