सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को जजों के खिलाफ ‘निंदनीय और मनगढ़ंत आरोप’ लगाने के ‘बढ़ते चलन’ पर कड़ी चेतावनी जारी की है। अदालत ने कहा कि यह चलन उन वादियों और वकीलों में बढ़ रहा है, जिनके पक्ष में फैसला नहीं आता।
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बी.आर. गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन की बेंच ने यह टिप्पणी एक अवमानना मामले को बंद करते हुए की। यह अवमानना कार्यवाही एक वादी और दो वकीलों के खिलाफ शुरू की गई थी, लेकिन अदालत ने इसे तब बंद कर दिया जब संबंधित हाईकोर्ट जज ने उनकी माफी स्वीकार कर ली।
अदालत ने अपने आदेश में टिप्पणी की, “हाल के दिनों में, हमने एक बढ़ता हुआ चलन देखा है कि जब जज अनुकूल आदेश नहीं देते हैं, तो उनके खिलाफ निंदनीय और मनगढ़ंत आरोप लगाए जाते हैं। इस तरह की प्रथा को सख्ती से हतोत्साहित करने की जरूरत है।”
यह अवमानना मामला वादी एन पेद्दी राजू और उनके दो वकीलों, रितेश पाटिल और नितिन मेश्राम से जुड़ा था। इन तीनों ने तेलंगाना हाईकोर्ट की जस्टिस मौशुमी भट्टाचार्य के खिलाफ एक मामले को किसी अन्य हाईकोर्ट में स्थानांतरित करने की मांग करते हुए “निंदनीय आरोप” लगाए थे।
जिस मूल मामले को लेकर यह विवाद शुरू हुआ, उसमें तेलंगाना के मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी को अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम से जुड़े एक केस में हाईकोर्ट से राहत मिली थी।
सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी स्थानांतरण याचिका में, राजू और उनके वकीलों ने आरोप लगाया था कि मामले में “न्याय के पटरी से उतरने की संभावना” है और उन्होंने जस्टिस भट्टाचार्य की निष्पक्षता पर “गंभीर चिंता” व्यक्त की थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि उनके वकील को बहस के लिए केवल पांच मिनट दिए गए।
सुप्रीम कोर्ट ने इन आरोपों पर कड़ा रुख अपनाते हुए इसे अदालत की अवमानना माना और राजू समेत दोनों वकीलों के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी।
अदालत ने 11 अगस्त को एक सुनवाई के दौरान, राजू और उनके वकीलों को सीधे जस्टिस भट्टाचार्य के सामने पेश होकर माफी मांगने का निर्देश दिया था। इसके बाद, 22 अगस्त को जस्टिस भट्टाचार्य ने उनकी माफी स्वीकार कर ली, हालांकि उन्होंने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए एक नोट भी दिया।
सोमवार को, सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य पर ध्यान देते हुए कि हाईकोर्ट की जज ने माफी स्वीकार कर ली है, इस अवमानना कार्यवाही को बंद करने का फैसला किया।
बेंच ने कहा, “कानून की महिमा दंड देने में नहीं, बल्कि माफी दिए जाने पर माफ कर देने में है। चूंकि हाईकोर्ट की माननीय जज, जिनके खिलाफ आरोप लगाए गए थे, उन्होंने माफी स्वीकार कर ली है, इसलिए हम इस मामले को आगे नहीं बढ़ा रहे हैं।”
इसके बावजूद, सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी पेशे से जुड़े लोगों को एक अंतिम चेतावनी भी दी।
अदालत ने कहा, “हम यह जोड़ना चाहते हैं कि वकील, अदालत के अधिकारी के तौर पर, भविष्य में ऐसी याचिकाओं पर हस्ताक्षर करने से पहले सावधान रहेंगे, जिनमें जजों के खिलाफ आरोप लगाए गए हों।”




