दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को ए.आर. रहमान की अपील स्वीकार करते हुए वह आदेश रद्द कर दिया, जिसमें उनकी फिल्म पोन्नियिन सेलवन 2 का गीत “वीरा राजा वीरा” दगर बंधुओं की रचना “शिव स्तुति” से समान ठहराया गया था।
न्यायमूर्ति सी. हरि शंकर और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने कहा कि एक कलाकार का किसी रचना को गाना या प्रस्तुत करना यह साबित नहीं करता कि वही उसका रचयिता भी है। पीठ ने स्पष्ट किया— “यदि हम यह मान लें कि जिसने रचना को प्रस्तुत किया वही उसका संगीतकार है, तो हमें कॉपीराइट अधिनियम में ‘संगीतकार’ की परिभाषा ही बदलनी पड़ेगी।” इसी आधार पर पीठ ने बिना उल्लंघन (infringement) के पहलू में गए अपील स्वीकार कर ली। विस्तृत निर्णय की प्रति बाद में जारी की जाएगी।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने 25 अप्रैल को दिए गए आदेश में कहा था कि “वीरा राजा वीरा” का मूल स्वर, भाव और श्रवण प्रभाव “शिव स्तुति” से समान है। उन्होंने निर्देश दिया था कि—

- गीत के क्रेडिट में स्पष्ट रूप से लिखा जाए: “रचना आधारित है शिव स्तुति पर, जिसे दिवंगत उस्ताद नसीर फैयाज़ुद्दीन दगर और दिवंगत उस्ताद नसीर ज़हीरुद्दीन दगर ने बनाया।”
- रहमान और मद्रास टॉकीज़ को ₹2 लाख हर्जाने के रूप में अदा करने होंगे।
इसके अलावा उन्होंने यह भी कहा था कि हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की मौलिक रचनाएँ कॉपीराइट कानून के तहत संरक्षित हैं।
रहमान ने अपील में कहा कि आदेश में “प्रदर्शन” (performance) और “लेखन/स्वामित्व” (authorship/ownership) को मिलाकर देखा गया है। केवल किसी रचना को गा देने से वह व्यक्ति उसका लेखक या संगीतकार नहीं हो जाता। साथ ही, एक ही राग में रचनाओं के बीच समानताएँ स्वाभाविक होती हैं।
हाईकोर्ट की इस नई व्यवस्था के बाद गाने के क्रेडिट सुधारने और हर्जाना देने का आदेश स्वतः निरस्त हो गया है। अब विस्तृत फैसला यह तय करेगा कि शास्त्रीय संगीत की पारंपरिक रचनाओं के संदर्भ में लेखकत्व और कॉपीराइट की सीमा कहाँ तक जाती है।