दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को मुखर्जी नगर स्थित सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट्स को तोड़ने और पुनर्निर्माण के लिए निविदा जारी करने की प्रक्रिया पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार कर दिया। अदालत ने कहा कि इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की देरी न तो निवासियों और न ही प्राधिकरणों के हित में है, क्योंकि इससे लागत और किराये दोनों बढ़ेंगे।
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने कहा कि वह ध्वस्तीकरण या निविदा प्रक्रिया पर रोक लगाने के पक्ष में नहीं है, लेकिन निवासियों को आश्वस्त किया कि पुनर्निर्माण पूरी तरह अदालत की निगरानी में होगा और सुरक्षा मानकों का पालन सुनिश्चित किया जाएगा। पीठ ने टिप्पणी की—“जितनी देरी होगी, लागत और किराया उतना ही बढ़ेगा… इसलिए परियोजना में देरी किसी के हित में नहीं है। ध्वस्तीकरण पर कोई रोक नहीं।”
पीठ ने स्पष्ट किया कि पुनर्निर्माण की निविदाएं तब तक नहीं निकाली जाएंगी जब तक योजना तैयार नहीं हो जाती। अदालत ने कहा, “योजना में 168 फ्लैटों का निर्माण शामिल होगा… हम सुनिश्चित करेंगे कि खाली कराने के बाद पुनर्निर्मित अपार्टमेंट्स हमारी देखरेख में तैयार हों और सभी सुरक्षा व डिज़ाइन मानकों का पालन हो।”

निवासियों की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि वे अपने फ्लैट खाली करने को तैयार हैं, लेकिन दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को तब तक ध्वस्तीकरण और निविदा जारी करने से रोका जाए जब तक अदालत यह तय नहीं कर देती कि अतिरिक्त फ्लैटों के निर्माण पर डीडीए का क्या अधिकार है।
डीडीए की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल संजय जैन ने दिसंबर 2023 में न्यायमूर्ति मिनी पुष्कर्णा के आदेश का हवाला देते हुए निवासियों को खाली कराने की मांग की। उस आदेश में इमारतों को असुरक्षित और रहने योग्य न मानते हुए तीन महीने में खाली कराने और पुनर्निर्माण तक डीडीए द्वारा किराया देने का निर्देश दिया गया था।
जैन ने कहा कि डीडीए को ध्वस्तीकरण की योजना अंतिम रूप देने में समय लगेगा, लेकिन इस दौरान निवासियों को दी जाने वाली सुविधा राशि 10% वार्षिक वृद्धि के साथ मिलती रहेगी, जब तक कि उन्हें नए फ्लैट का कब्जा नहीं सौंपा जाता।
पीठ ने डीडीए की उस याचिका पर नोटिस जारी किया जिसमें उसने न्यायमूर्ति पुष्कर्णा के आदेश को चुनौती दी थी। उस आदेश में डीडीए को पुनर्विकास योजना में 168 अतिरिक्त फ्लैट बनाने से रोक दिया गया था और निवासियों को 0.67 हेक्टेयर अतिरिक्त भूखंड का अधिकार दिया गया था। इसके साथ ही पीठ ने एक निवासी की याचिका पर भी फैसला सुरक्षित रखा, जिसमें दिसंबर आदेश की समीक्षा याचिका खारिज किए जाने को चुनौती दी गई है।