मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ ने राज्य मानवाधिकार आयोग (SHRC) द्वारा जारी समन को चुनौती देने वाली एक याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया है कि जब तक तथ्यात्मक विवादों का निपटारा आयोग द्वारा नहीं हो जाता, तब तक हाईकोर्ट को पूर्व-निर्णय (pre-adjudication) चरण में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
यह आदेश न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और डॉ. न्यायमूर्ति ए.डी. मारिया क्लीट की खंडपीठ द्वारा 16 जून 2025 को डब्ल्यूपी (एमडी) संख्या 7395/2025 में पारित किया गया। यह याचिका सेवानिवृत्त लोक सेवक नागराज द्वारा दायर की गई थी, जिसमें उन्होंने दिनांक 18.12.2024 को राज्य मानवाधिकार आयोग, तमिलनाडु के रजिस्ट्रार (कानून) द्वारा मामला संख्या 1483/2016/HC3 में उनके विरुद्ध जारी समन को रद्द करने की मांग की थी।
पृष्ठभूमि
याचिकाकर्ता, जो एक सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी हैं, ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै पीठ का रुख किया और आयोग द्वारा जारी समन को रद्द करने हेतु सर्टियोरारी रिट की मांग की। उन्होंने यह तर्क दिया कि समन का कोई औचित्य नहीं है और उन्होंने अपने बचाव में कई तथ्यात्मक दलीलें भी प्रस्तुत कीं।

अदालत के अवलोकन
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस प्रकार के तथ्यात्मक बचाव केवल राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं, न कि हाईकोर्ट के समक्ष:
“इन सभी तथ्यात्मक बचावों को याचिकाकर्ता को राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए ताकि वह उचित आदेश पारित कर सके।”
खंडपीठ ने न्यायिक समीक्षा की सीमाओं को रेखांकित करते हुए कहा:
“इसके विपरीत, हाईकोर्ट, मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत गठित राज्य मानवाधिकार आयोग के समक्ष विचाराधीन विवादित तथ्यों पर न्यायिक समीक्षा की शक्ति का प्रयोग कर निर्णय नहीं ले सकता।”
अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को अधिनियम और संबंधित नियमों के अनुसार आयोग के समन का उत्तर देने की स्वतंत्रता है।
निर्णय
कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया और विवादित समन को रद्द करने से इनकार किया। संबंधित सभी अंतःवर्ती याचिकाएं (miscellaneous petitions) भी समाप्त कर दी गईं। किसी पक्ष को कोई लागत (cost) नहीं दी गई।
मामले का विवरण:
मामला शीर्षक: नागराज बनाम रजिस्ट्रार (लॉ FAC), राज्य मानवाधिकार आयोग, तमिलनाडु
मामला संख्या: डब्ल्यूपी (एमडी) संख्या 7395/2025