सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को अभिनेता कमल हासन की फिल्म थग लाइफ की कर्नाटक में रिलीज पर हो रहे व्यवधानों को लेकर कड़ी आपत्ति जताई और स्पष्ट किया कि फिल्म, स्टैंड-अप कॉमेडी या कविता पाठ जैसे कलात्मक अभिव्यक्तियों को केवल “भावनाएं आहत होने” के आधार पर रोका नहीं जा सकता। अदालत ने चेतावनी दी कि संविधान प्रदत्त स्वतंत्रताओं पर भीड़तंत्र का दबाव हावी नहीं होने दिया जा सकता और राज्य सरकार को फिल्म की निर्बाध रिलीज सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति उज्जल भूइयां और न्यायमूर्ति मनमोहन की पीठ ने एम. महेश रेड्डी द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की। अदालत ने कहा, “भारत में भावनाएं आहत होने की कोई सीमा नहीं है। अगर कोई स्टैंड-अप कॉमेडियन कुछ कहता है, तो प्रदर्शन और तोड़फोड़ शुरू हो जाती है। क्या इसका मतलब यह है कि ऐसे कार्यक्रम बंद कर दिए जाएं?”
पीठ ने यह भी नोट किया कि कर्नाटक सरकार ने एक हलफनामा दायर कर यह आश्वासन दिया है कि थग लाइफ की स्क्रीनिंग कर रहे सिनेमाघरों को पर्याप्त पुलिस सुरक्षा दी जाएगी। यह तमिल फिल्म, जिसे मणिरत्नम ने निर्देशित किया है और जिसमें कमल हासन ने अभिनय किया है, 5 जून को देशभर में रिलीज हुई थी लेकिन कर्नाटक में अभिनेता के विवादित बयान के बाद अड़चनें आईं। हासन ने एक प्रचार कार्यक्रम में कहा था कि “कन्नड़ भाषा तमिल से उत्पन्न हुई है,” जिससे राज्य में आक्रोश फैल गया।
भीड़ के दबाव या गैर-सरकारी प्रतिबंध को खारिज करते हुए पीठ ने कहा, “यदि कोई व्यक्ति या समूह फिल्म की रिलीज को रोकने या हिंसा करने की कोशिश करता है, तो राज्य को नागरिक और आपराधिक कानूनों के तहत तत्काल कार्रवाई करनी होगी, जिसमें हर्जाने की मांग भी शामिल है।”
न्यायालय ने कर्नाटक फिल्म चेंबर ऑफ कॉमर्स (KFCC) को भी फटकार लगाई, जिसने कमल हासन से माफी की मांग की थी। न्यायमूर्ति भूइयां ने कहा, “आप वास्तव में भीड़ के दबाव में आ गए। क्या आपने पुलिस के पास शिकायत की? नहीं। इसका मतलब है कि आपको उनसे कोई शिकायत नहीं है, आप बस उनके पीछे छिप रहे हैं।”
थग लाइफ के निर्माता राजकमल फिल्म्स इंटरनेशनल लिमिटेड की ओर से पेश वकील ने अदालत को बताया कि प्रोडक्शन हाउस को ₹30 करोड़ से अधिक का नुकसान हुआ है, लेकिन यदि सुरक्षा दी जाए तो वे स्क्रीनिंग फिर से शुरू करने को तैयार हैं।
कन्नड़ साहित्य परिषद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय नूली ने कहा कि भाषा कर्नाटक में भावनात्मक मुद्दा है और यदि कमल हासन माफी नहीं मांगते तो स्थिति और बिगड़ सकती है। इस पर कोर्ट ने सख्ती से कहा, “माफी की कोई बात ही नहीं है। आप कानून अपने हाथ में नहीं ले सकते। अगर आपको बयान से आपत्ति है तो मानहानि का मुकदमा करें।”
अदालत ने राज्य सरकार के आश्वासन को रिकॉर्ड में लेते हुए यह स्पष्ट किया कि और किसी दिशा-निर्देश या लागत की आवश्यकता नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करना राज्य का दायित्व है कि कानून का शासन भीड़ के हुक्म के आगे न झुके।
इससे पहले 17 जून को हुई सुनवाई में न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा था कि “CBFC से प्रमाणित किसी भी फिल्म को रिलीज होने से नहीं रोका जा सकता। आप लोगों के सिर पर बंदूक रखकर यह नहीं कह सकते कि वे फिल्म न देखें। हम यह नहीं कह रहे कि लोग फिल्म ज़रूर देखें, लेकिन इसे रिलीज होने देना जरूरी है।”
यह विवाद 3 जून को चेन्नई में एक प्रचार कार्यक्रम के दौरान कमल हासन के बयान के बाद शुरू हुआ, जिसके बाद कर्नाटक में व्यापक विरोध और प्रतिबंध की मांगें उठीं। कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी इस विवाद को लेकर टिप्पणी की थी कि एक सामान्य माफी से स्थिति शांत हो सकती थी।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि सार्वजनिक आक्रोश के नाम पर संविधान में प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कलात्मक अधिकारों को कुचला नहीं जा सकता।