केरल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को यह निर्देश दिया है कि वे निजी पेट्रोलियम आउटलेट्स में बने शौचालयों को जनता के लिए अनिवार्य रूप से खोलने के लिए याचिकाकर्ताओं पर दबाव न डालें। यह अंतरिम आदेश न्यायमूर्ति सी.एस. डायस ने पेट्रोलियम ट्रेडर्स वेलफेयर एंड लीगल सर्विस सोसाइटी और पांच अन्य पेट्रोल पंप मालिकों की याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया।
याचिकाकर्ताओं ने अदालत का रुख किया था, यह कहते हुए कि कुछ स्थानीय स्वशासन संस्थाएं उनके निजी स्वामित्व वाले पेट्रोल पंपों में बने शौचालयों को ‘सार्वजनिक शौचालय’ घोषित करने का प्रयास कर रही हैं। कुछ मामलों में नगरपालिकाओं द्वारा शौचालय परिसर में सार्वजनिक शौचालय संबंधी संकेतक (signboard) तक चिपका दिए गए थे, जिससे आमजन में भ्रम उत्पन्न हो गया।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि ये शौचालय केवल उनके ग्राहकों की आपातकालीन जरूरतों को ध्यान में रखते हुए बनाए गए हैं, लेकिन अब उन्हें सार्वजनिक उपयोग के लिए मजबूर किया जा रहा है। इसके चलते बड़ी संख्या में लोग, विशेष रूप से टूरिस्ट बसों के यात्री, इन शौचालयों का उपयोग करने के लिए पहुंच रहे हैं, जिससे संचालन में बाधा उत्पन्न हो रही है।

याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्तागण आदर्श कुमार, के.एम. अनीश, शशांक देवेन और यदु कृष्णन पी.एम. ने पक्ष रखा। उन्होंने तर्क दिया कि पेट्रोल पंप परिसर में बने शौचालय निजी संपत्ति हैं, जिन्हें संचालकों ने अपने खर्च पर बनाया और रख-रखाव किया है। ऐसी स्थिति में, बिना किसी कानूनी अधिकार के इन शौचालयों को सार्वजनिक घोषित करना संविधान के अनुच्छेद 300A (जिसमें निजी संपत्ति का संरक्षण सुनिश्चित किया गया है) का उल्लंघन है।
इसके अतिरिक्त, अधिवक्ताओं ने पेट्रोलियम अधिनियम और पेट्रोलियम नियम, 2002 का भी हवाला दिया, यह बताते हुए कि पेट्रोल पंप ज्वलनशील पदार्थों के भंडारण के कारण उच्च जोखिम वाले क्षेत्र माने जाते हैं। इस कारण, आमजन को असीमित रूप से शौचालय उपयोग की अनुमति देना न केवल सुरक्षा के लिए खतरा है, बल्कि व्यावसायिक संचालन में भी गंभीर व्यवधान उत्पन्न करता है।
इन दलीलों पर विचार करते हुए, कोर्ट ने अंतरिम आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार और स्थानीय निकायों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ताओं को शौचालय जनता के लिए खोलने के लिए बाध्य न करें। मामले की आगे की सुनवाई नियत तिथि पर की जाएगी।