हिरासत में मौत: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने मां को ₹2 लाख मुआवजा देने का आदेश दिया

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने सुरज हथठेल की हिरासत में हुई मौत के मामले में राज्य सरकार को उसकी मां को ₹2,00,000 मुआवजा देने का आदेश दिया है। कोर्ट ने माना कि मृतक की मृत्यु मौलिक अधिकारों के उल्लंघन का मामला है और संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मुआवजा दिया जाना उचित है।

मामले की पृष्ठभूमि:
याचिकाकर्ता प्रेमा हथठेल ने WPCR No. 503 of 2024 के तहत याचिका दायर कर अपने पुत्र सुरज हथठेल की हिरासत में हुई मौत की स्वतंत्र एजेंसी से जांच, सभी दस्तावेजों की प्रतियां, और मुआवजे की मांग की थी। सुरज की मृत्यु कोरबा के थाना सिविल लाइन, रामपुर की पुलिस हिरासत में हुई थी।

राज्य सरकार ने दावा किया कि मृतक की मृत्यु मायोकार्डियल इन्फेक्शन (हृदयाघात) से हुई, जो पूर्व से हृदय रोग और शराब सेवन की आदत के कारण हुआ।

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याचिकाकर्ता की दलीलें:
याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अनशुल तिवारी ने प्रस्तुत किया:

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“राज्य की ओर से भूपेश एक्का (CSP, कोरबा) द्वारा प्रस्तुत हलफनामा… एक सुनियोजित प्रयास है जो सच्चाई को छुपाने और हिरासत में हुई प्रताड़ना व मौत की जवाबदेही से बचने के लिए किया गया है।”

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार मृतक के शरीर पर अनेक चोटें थीं, जिनमें से कुछ इस प्रकार थीं:

“पटेला (घुटने की हड्डी) में कम्यूनिटेड फ्रैक्चर,”
“बाएं पैर पर मांसपेशी/हड्डी तक गहराई वाला चीरा,”
“बाएं माथे और बाएं हाथ पर खरोंच के निशान।”

याचिका में कहा गया कि:

“राज्य का यह दावा कि सुरज को रेलवे ट्रैक पर गिरने से चोट आई, अविश्वसनीय है और इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।”

महत्वपूर्ण यह भी रहा कि 2:47 AM के बाद की सीसीटीवी फुटेज उपलब्ध नहीं थी। कोर्ट ने पाया:

“मजिस्ट्रेट ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि बिजली कटौती के प्रमाण (जैसे विद्युत विभाग की रिपोर्ट या जेनरेटर लॉग) प्रस्तुत नहीं किए गए।”

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कोर्ट के अवलोकन:
कोर्ट ने Nilabati Behera v. State of Orissa [AIR 1993 SC 1960] के हवाले से कहा:

“यह अब स्थापित सिद्धांत है कि राज्य अपने कर्मचारियों के प्रतिकरात्मक कृत्यों के लिए उत्तरदायी है।”

साथ ही, D.K. Basu v. State of West Bengal [(1997) 1 SCC 416] से उद्धृत किया:

“हिरासत में की गई हिंसा… क़ानून के शासन पर आघात करती है… यह उन लोगों द्वारा की जाती है जो नागरिकों के रक्षक माने जाते हैं, और यह बंद कमरे में वर्दी और अधिकार की आड़ में की जाती है।”

कोर्ट ने यह भी माना:

“यह स्थापित विधि है कि सार्वजनिक क़ानून के अंतर्गत मौलिक अधिकारों के उल्लंघन पर मुआवजा दिया जा सकता है।”

अंतिम निर्णय:
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा:

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“हमें कोई झिझक नहीं कि याचिकाकर्ता, जो मृतक सुरज हथठेल की माता है, वह अपने पुत्र की अकाल मृत्यु के लिए मुआवजे की हकदार है।”

कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किया:

“राज्य प्रतिवादी को एक रिट ऑफ़ मैंडेमस के तहत निर्देशित किया जाता है कि वह याचिकाकर्ता को ₹2,00,000/- (रुपये दो लाख मात्र) का मुआवजा इस आदेश की तिथि से आठ सप्ताह की अवधि के भीतर भुगतान करे, अन्यथा यह राशि 9% वार्षिक ब्याज दर से देय होगी।”

मामला: प्रेमा हथठेल बनाम राज्य शासन छत्तीसगढ़ एवं अन्य
याचिका संख्या: WPCR No. 503 of 2024

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