सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को महिला जज के साथ कोर्ट में अभद्र और अशोभनीय भाषा का प्रयोग करने वाले अधिवक्ता संजय राठौर की सजा में राहत देने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने कहा कि इस प्रकार के कृत्य से महिला जजों की गरिमा और सुरक्षा को गहरा आघात पहुंचता है।
पीठ की सख्त टिप्पणी
जस्टिस प्रशांत कुमार मिश्र और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने दिल्ली हाईकोर्ट के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की, जिसमें अधिवक्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखा गया था। सजा कम करने की अपील खारिज करते हुए पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा—
“आज दिल्ली में हमारी अधिकतर अधिकारी महिलाएं हैं। यदि कोई ऐसे ही बचकर निकल जाए, तो वे काम नहीं कर पाएंगी। उनके हालात के बारे में सोचिए।”
मामला क्या था?
यह घटना एक चालान से संबंधित मामले की सुनवाई के दौरान हुई थी, जहां संजय राठौर ने महिला न्यायिक अधिकारी से आक्रामक और धमकी भरे लहजे में तत्काल आदेश पारित करने की मांग की। उन्होंने बेहद आपत्तिजनक और अशिष्ट भाषा का प्रयोग किया। बाद में जज ने उनके खिलाफ शिकायत दर्ज कराई, जिसमें उनके आत्मसम्मान और न्यायालय की गरिमा को ठेस पहुँचाने का आरोप था।
निचली अदालत और सजा
संजय राठौर को ट्रायल कोर्ट ने निम्न सजा सुनाई थी—
- 18 महीने की साधारण कैद – धारा 509 आईपीसी (किसी महिला की मर्यादा को ठेस पहुँचाने वाले शब्द, संकेत या कार्य)।
- 3-3 महीने की कैद – धारा 189 (लोक सेवक को धमकी देना) और धारा 353 (लोक सेवक के कर्तव्य निर्वहन में बाधा पहुँचाने के लिए हमला या आपराधिक बल)।
दिल्ली हाईकोर्ट का फैसला
दिल्ली हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति स्वर्ण कांता शर्मा ने दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए आदेश दिया कि सभी सजाएं साथ-साथ चलेंगी, जिससे कुल सजा 18 महीने की ही रह गई। उस समय तक आरोपी पहले ही 5 महीने 17 दिन जेल में काट चुका था।
अपने फैसले में हाईकोर्ट ने कहा:
“यह केवल व्यक्तिगत दुर्व्यवहार का मामला नहीं है, बल्कि यह न्याय के साथ हुए अन्याय का मामला है – जहां एक जज, जो कानून की निष्पक्ष आवाज़ का प्रतीक है, अपने कर्तव्यों का निर्वहन करते हुए व्यक्तिगत हमले का शिकार बनी।”
न्यायालय ने यह भी कहा कि इस घटना से यह पता चलता है कि “कानूनी व्यवस्था के सबसे ऊंचे स्तर पर भी महिलाएं प्रणालीगत असुरक्षा का सामना कर रही हैं।”
सुप्रीम कोर्ट में दलीलें और फैसला
याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने सजा को 6 महीने तक कम करने की गुहार लगाई, यह कहते हुए कि आरोपी के माता-पिता वृद्ध हैं, उसके छोटे बच्चे हैं और बार काउंसिल ने पहले ही उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की है।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने सजा में कोई राहत नहीं दी। जस्टिस मनमोहन ने कहा कि जिस भाषा का प्रयोग किया गया, वह इतनी आपत्तिजनक थी कि उसे कोर्ट में दोहराया भी नहीं जा सकता। इससे इस कृत्य की गंभीरता स्पष्ट होती है।
अंत में कोर्ट ने याचिकाकर्ता को आत्मसमर्पण के लिए दो सप्ताह का समय दिया।