सुप्रीम कोर्ट ने मोहित सुरेश हरचंद्राई बनाम हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स लिमिटेड मामले में 25 वर्षों तक लंबित रहे किरायेदारी विवाद को लेकर गंभीर चिंता जताई है और बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया है कि वे ऐसे मामलों के शीघ्र निपटारे के लिए आवश्यक कदम उठाएं।
न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने यह निर्णय पारित करते हुए बंबई हाईकोर्ट के रिट याचिका संख्या 16741/2024 (निर्णय दिनांक 4 दिसंबर 2024) को बरकरार रखा, जिसमें किरायेदार हिंदुस्तान ऑर्गेनिक केमिकल्स लिमिटेड (HOCL) को ‘हर्चंद्राई हाउस’ नामक भवन में अनधिकृत कब्जे की अवधि के लिए मुआवज़ा (mesne profits) देने का आदेश दिया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि
HOCL ने 1 अप्रैल 1962 से 31 मार्च 1966 तक मुंबई के 81/ए, महर्षि कर्वे रोड स्थित “हर्चंद्राई हाउस” के दूसरे माले को किराए पर लिया था। पट्टा समाप्त होने के बाद HOCL मासिक किरायेदार के रूप में वहीं बनी रही। मकान मालिकों ने 25 अप्रैल 2000 को किरायेदारी समाप्त करते हुए 2 सितंबर 2000 को मुंबई की स्मॉल कॉज़ कोर्ट में बेदखली व कब्ज़ा वापसी के लिए वाद दायर किया।
15 अप्रैल 2009 को कोर्ट ने मकान मालिकों के पक्ष में फैसला सुनाया और जून 2000 से कब्जा वापसी तक mesne profits देने का निर्देश भी पारित किया। HOCL ने इस निर्णय को चुनौती दी, लेकिन अंतिम रूप से 23 अप्रैल 2014 को संपत्ति खाली कर दी गई।
Mesne Profits को लेकर कार्यवाही
2 मई 2022 को स्मॉल कॉज़ कोर्ट ने HOCL को जून 2000 से दिसंबर 2006 तक ₹138 प्रति वर्ग फुट प्रतिमाह और शेष अवधि के लिए ₹274 प्रति वर्ग फुट प्रतिमाह, 9% वार्षिक ब्याज सहित भुगतान का आदेश दिया।
बाद में अपील पर कोर्ट ने एक समान दर ₹183 प्रति वर्ग फुट प्रतिमाह निर्धारित की, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर ₹160 प्रति वर्ग फुट प्रतिमाह निर्धारित किया। हाईकोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि मूल्य निर्धारण में तथ्यात्मक त्रुटियाँ हुई थीं, और सार्वजनिक उपक्रम होने के बावजूद HOCL को कोई विशेष छूट नहीं दी जा सकती।
सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए केवल ब्याज दर को घटाकर 6% वार्षिक (साधारण ब्याज) कर दिया और तीन महीने के भीतर पूरा भुगतान करने का निर्देश दिया।
कोर्ट ने देरी पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए कहा:
“इस विवाद को न्यायिक प्रणाली में समाप्त होने में ढाई दशक से अधिक का समय लग गया… मकान मालिक ने 2000 में किरायेदारी समाप्त करने की पहल की थी और अब, एक चौथाई सदी बीतने के बाद, उन्हें अपनी संपत्ति से मिलने वाला आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।”
कोर्ट ने आगे कहा:
“किरायेदारी विवादों में देरी के कारण दोनों पक्षों को हानि होती है — मकान मालिक को आर्थिक नुकसान और किरायेदार को अचानक बड़ी राशि का भुगतान करने की कठिनाई। न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी कार्यवाही के कारण कोई पक्ष पीड़ित न हो।”
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष रूप से बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध किया:
“हम बॉम्बे हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वे इस प्रकार के लंबित किरायेदारी मामलों की संख्या जानने के लिए रिपोर्ट मांगें और यदि इस प्रकार के और भी मामले लंबित हैं, तो उनके शीघ्र निपटारे के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश जारी करें।”
अंतिम आदेश
न्यायालय ने सिविल अपीलों को उपरोक्त संशोधनों सहित निपटाते हुए सभी लंबित आवेदनों का भी निस्तारण कर दिया।