सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रक्षा भूमि के निजी संस्थाओं को आवंटन में कथित अनियमितताओं पर गहरी चिंता व्यक्त की और इस मामले की पूरी तरह से जांच के लिए एक स्वतंत्र जांच समिति गठित करने का सुझाव दिया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ 2014 में गैर-सरकारी संगठन ‘कॉमन कॉज़’ द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें देशभर में रक्षा भूमि पर कब्जों और दुरुपयोग का मुद्दा उठाया गया है। पीठ ने विशेष रूप से छावनी क्षेत्रों में प्रभावशाली व्यक्तियों, रक्षा संपदा अधिकारियों और न्यायपालिका के कुछ हिस्सों की मिलीभगत से हुए लेन-देन पर चिंता जताई।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “हम अभी ज्यादा नहीं कहना चाहते क्योंकि यह समय से पहले होगा, लेकिन एक छावनी क्षेत्र में विशाल बंगले और एकड़ों में फैली खुली जमीन 99 वर्षों या अनिश्चित काल के लिए पट्टे पर दी गई है।” उन्होंने यह भी बताया कि इन सैन्य क्षेत्रों में शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और उच्च मूल्य की संपत्तियां पट्टे पर दी गई हैं।
उन्होंने आगे कहा, “यह केवल प्रशासनिक चूक नहीं है। यदि यह कोई रैकेट नहीं है, तो यह उच्च अधिकारियों की घोर लापरवाही है, जो शायद इस मुद्दे की गंभीरता को समझ ही नहीं सके।”
पीठ ने अपीलों में देरी पर भी आलोचना की और कहा कि कुछ मामलों में वर्षों बाद अपील की गई, ताकि तकनीकी आधार पर खारिज करवाई जा सके। “न्यायालयों में दोस्ताना मैच खेला गया,” न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ अधीनस्थ अदालतों ने यह घोषित किया कि भूमि पर कोई दावे नहीं हैं और वे निजी संस्थाओं की संपत्ति हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने बताया कि केंद्र सरकार ने 2017 में दायर अपने हलफनामे में अतिक्रमण की बात स्वीकार की थी, लेकिन उसमें दिए गए आंकड़ों में विरोधाभास है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार इन आवंटनों को यह कहकर उचित ठहराना चाहती है कि ये सुविधाएं सैनिकों की दैनिक जरूरतों को पूरा करती हैं — जिसे पीठ ने अस्वीकार्य बताया।
कोर्ट ने केंद्र सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी को 2017 के निर्देशों के तहत भूमि रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की वर्तमान स्थिति पर अद्यतन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। भाटी ने स्वीकार किया कि पुराना हलफनामा अप्रासंगिक हो गया है और नया हलफनामा दाखिल करने की पेशकश की।
पीठ ने निष्पक्ष जांच सुनिश्चित करने के लिए एक टीम गठित करने का सुझाव दिया, जिसमें भारत के महालेखाकार (CAG) का प्रतिनिधि, एक विधिक विशेषज्ञ, एक भूमि राजस्व अधिकारी और रक्षा मंत्रालय का अधिकारी शामिल होगा — लेकिन वर्तमान रक्षा संपदा अधिकारियों को शामिल नहीं किया जाएगा। जहां क्षेत्रीय भाषा की जरूरत हो, वहां स्थानीय विधि अधिकारियों की सहायता भी ली जा सकती है।
पीठ ने कहा, “यह बहुत गंभीर मामला है। एक बार भूमि निजी संस्थाओं को दे दी गई, तो यह आपके नियंत्रण से बाहर हो जाती है कि वह आगे कैसे हस्तांतरित होती है। इसमें कई अज्ञात खतरे जुड़े होते हैं।”
कोर्ट ने केंद्र से अद्यतन हलफनामा और प्रस्तावित जांच समिति की संरचना पर जवाब मिलने के बाद अगली सुनवाई निर्धारित की है।