सुप्रीम कोर्ट ने दी यूजीसी को हरी झंडी, अब कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में लागू होंगे जाति-भेदभाव विरोधी नियम

शैक्षणिक संस्थानों में बढ़ते जाति आधारित भेदभाव और आत्महत्या की घटनाओं पर अंकुश लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) को नए नियम अधिसूचित करने की अनुमति दे दी है। ये नियम देश भर के कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में समानता और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।

यह फैसला रोहित वेमुला और पायल तड़वी की माताओं – राधिका वेमुला और आबेदा सलीम तड़वी – द्वारा दाखिल जनहित याचिका (PIL) के आधार पर आया है। दोनों छात्रों ने वर्ष 2016 में कथित जातीय भेदभाव के कारण आत्महत्या कर ली थी। याचिका में यूजीसी की 2012 की समानता संबंधी विनियमों को सख्ती से लागू करने की मांग की गई थी ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकी जा सके।

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राष्ट्रीय कार्यबल (NTF) द्वारा छात्रों की आत्महत्याओं की जांच और भेदभाव की प्रकृति को समझने के लिए बनाई गई समिति की भूमिका को लेकर उठे संभावित टकराव के सवालों पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने स्पष्ट किया कि यूजीसी के नियम इस प्रक्रिया में बाधा नहीं बनेंगे। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, “समाज के कई वर्ग जो आवाज नहीं उठा पाते, ऐसे नियमों की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को बताया कि यूजीसी “उच्च शिक्षण संस्थानों में समानता को बढ़ावा देने संबंधी विनियम, 2025” के मसौदे को अंतिम रूप दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ये नियम भविष्य में एनटीएफ की अनुशंसाओं के अतिरिक्त कार्य करेंगे। कार्यबल में पूर्व सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश एस. रविंद्र भट जैसे प्रतिष्ठित सदस्य शामिल हैं।

इस निर्णय के साथ-साथ अदालत ने आईआईटी दिल्ली के दो छात्रों की 2023 में हुई आत्महत्याओं की पुलिस जांच के भी आदेश दिए, जिससे न्यायपालिका की इस संवेदनशील सामाजिक मुद्दे पर गंभीरता जाहिर होती है।

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वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह, जो याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं, ने मसौदा नियमों में जाति भेदभाव, यौन उत्पीड़न और दिव्यांगता आधारित भेदभाव को एक ही प्रशासनिक ढांचे के तहत समेटे जाने पर आपत्ति जताई। उन्होंने तर्क दिया कि इन सभी प्रकार के भेदभाव की प्रकृति अलग होती है और इन्हें अलग-अलग तरीके से संभालने की आवश्यकता होती है।

अदालत ने इस पर कहा कि जयसिंह और अन्य पक्षकार यूजीसी के नियमों में संशोधन के लिए सुझाव दे सकते हैं या नियम अधिसूचित होने पर उन्हें चुनौती दे सकते हैं। यह लचीलापन सुनिश्चित करता है कि नियम विभिन्न प्रकार के भेदभाव से निपटने में प्रभावी रूप से सक्षम हों।

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