न सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दहेज प्रताड़ना के मामलों में पति के रिश्तेदारों को अभियुक्त बनाने की बढ़ती प्रवृत्ति पर गंभीर टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने एक महिला द्वारा अपने सास-ससुर के खिलाफ दर्ज दहेज उत्पीड़न के मामले को खारिज करते हुए कहा कि आरोप सामान्य और अस्पष्ट हैं, जिनमें शारीरिक प्रताड़ना का कोई ठोस उल्लेख नहीं है।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने कहा कि शिकायत में केवल तानों और राजनीतिक पहुंच की बात की गई थी, जिसमें कहा गया था कि आरोपी परिवार मंत्री स्तर तक की पहुंच रखते हैं और उन्होंने पति को महिला पर अतिरिक्त दहेज का दबाव बनाने के लिए उकसाया।
अदालत ने भारतीय दंड संहिता की धारा 498ए और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 4 के तहत ससुराल पक्ष के रिश्तेदारों को बार-बार अभियुक्त बनाए जाने की प्रवृत्ति की आलोचना की। पीठ ने कहा, “दहेज पीड़ित द्वारा पति के रिश्तेदारों को अभियुक्त बनाए जाने की बढ़ती प्रवृत्ति को देखते हुए, इस न्यायालय ने ऐसी प्रथा की निंदा की है।”

यह मामला आंध्र प्रदेश के गुंटूर में वर्ष 2014 में हुई एक शादी से जुड़ा था। विवाह के पांच महीने बाद महिला अपने मायके लौट गई और कुछ समय तक दोनों घरों के बीच आती-जाती रही। अंततः वह अमेरिका में बस गई, बिना पति या ससुराल वालों को सूचना दिए। इसके बाद पति ने 2016 में वैवाहिक सहवास की पुनः स्थापना और फिर विवाह विच्छेद की याचिका दायर की। जवाब में पत्नी ने पति सहित कई रिश्तेदारों के खिलाफ पुलिस में शिकायतें दर्ज कराईं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामलों में जांच का केंद्र केवल वास्तविक अपराधियों पर होना चाहिए न कि पूरे ससुराल परिवार को कानूनी झंझट में डालने पर।