बॉम्बे हाईकोर्ट ने नासिक निवासी शाहबाज अहमद मोहम्मद यूसुफ के खिलाफ जारी निरोध आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि उन्हें गवाहों के बयानों का उर्दू अनुवाद प्रदान नहीं किया गया, जो उनकी मूल भाषा है। यह निर्णय न्यायमूर्ति सारंग कोतवाल और न्यायमूर्ति एस.एम. मोडक की खंडपीठ द्वारा 21 मार्च को सुनाया गया था, जिसकी जानकारी शुक्रवार को सार्वजनिक की गई।
कोर्ट ने कहा कि मराठी में दर्ज गवाहों के बयानों का उर्दू में अनुवाद न दिए जाने के कारण शाहबाज को निरोध आदेश को प्रभावी रूप से चुनौती देने का अधिकार नहीं मिल पाया, जिससे उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ। फैसले में कहा गया, “चूंकि बयान उस भाषा में नहीं दिए गए जिससे बंदी परिचित था, इसलिए वह आदेश को शीघ्रता से चुनौती देने में असमर्थ रहा।”
शाहबाज को जुलाई 2024 में नासिक के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा नौ लंबित मामलों का हवाला देते हुए निरोध आदेश दिया गया था। हालांकि उन्हें आदेश का उर्दू अनुवाद दिया गया था, लेकिन मामले से संबंधित महत्वपूर्ण गवाहों के बयान—जो कि मराठी में थे—का कोई अनुवाद नहीं दिया गया, जिससे वे आरोपों को पूरी तरह समझ नहीं सके और उपयुक्त जवाब भी नहीं दे सके।

कोर्ट ने कहा, “यह उतना ही जरूरी था कि निरोध आदेश जारी करने वाले अधिकारी मराठी में दर्ज इन-कैमरा बयानों का उर्दू अनुवाद भी बंदी को उपलब्ध कराते।” न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि दस्तावेजों का अनुवाद न देना शाहबाज को प्रभावी प्रतिनिधित्व करने से वंचित करता है, जो कि संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है।