सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ नकदी बरामदगी के आरोपों के बीच एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई

भारत में न्यायिक जवाबदेही की बुनियाद को झकझोरने वाले एक अहम घटनाक्रम में, सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें दिल्ली उच्च न्यायालय के मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई है। यह याचिका अधिवक्ता मैथ्यू जे. नेदुमपारा द्वारा दायर की गई है, जिसमें कई वकीलों और नागरिकों ने समर्थन किया है। याचिका में उस कानूनी संरक्षण को चुनौती दी गई है जो मौजूदा न्यायाधीशों को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) की अनुमति के बिना तत्काल आपराधिक जांच से बचाता है।

यह याचिका उस समय सामने आई जब होली की रात 14 मार्च को दिल्ली स्थित न्यायमूर्ति वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना के दौरान कथित रूप से करीब ₹15 करोड़ नकद बरामद हुआ। याचिका के अनुसार, जब दमकलकर्मी आग बुझाने पहुंचे, तो उन्हें परिसर के एक हिस्से में भारी मात्रा में नकदी मिली। इसके बाद यह जानकारी विभिन्न सरकारी विभागों के माध्यम से होती हुई भारत के मुख्य न्यायाधीश तक पहुंची।

READ ALSO  SC Rules That Subsequent Purchaser Doesn't Have Any Locus To Challenge Land Acquisition Proceedings

याचिकाकर्ताओं का कहना है कि के. वीरस्वामी बनाम भारत संघ (1991) के फैसले में तय किया गया यह प्रावधान कि किसी भी न्यायाधीश के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से पहले CJI की अनुमति जरूरी है, “कानून के समक्ष समानता” जैसे संवैधानिक सिद्धांत का उल्लंघन करता है। उनका तर्क है कि यदि यह मामला किसी अफसर या राजनेता का होता, तो एफआईआर तुरंत दर्ज होती और पुलिस जांच शुरू कर देती।

Video thumbnail

याचिका में कहा गया है, “अगर न्यायमूर्ति वर्मा की जगह कोई अफसर या राजनेता होते, तो एफआईआर उसी समय दर्ज हो जाती। पुलिस कार्रवाई करती और अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर होती। लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं हुआ।”

याचिका में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई आंतरिक जांच पर भी सवाल उठाए गए हैं। याचिकाकर्ता का कहना है कि कॉलेजियम के पास इस तरह की आपराधिक जांच करने का संवैधानिक या वैधानिक अधिकार नहीं है। “कॉलेजियम द्वारा बनाई गई तीन सदस्यीय समिति पूरी तरह से अवैध है और इसकी कोई वैधानिक वैधता नहीं है,” याचिका में कहा गया।

याचिका में प्रमुख मांगें:

  • यह घोषित किया जाए कि न्यायमूर्ति वर्मा के आवास से नकदी की बरामदगी एक संज्ञेय अपराध है और FIR दर्ज किया जाना अनिवार्य है।
  • वीरस्वामी फैसले में CJI की अनुमति की अनिवार्यता को “per incuriam” यानी कानून की जानकारी के बिना दिया गया फैसला घोषित किया जाए।
  • कॉलेजियम को ऐसी जांच का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है, यह स्पष्ट किया जाए।
  • दिल्ली पुलिस को एफआईआर दर्ज कर उचित जांच शुरू करने का निर्देश दिया जाए।
  • किसी भी संस्था या व्यक्ति को पुलिस जांच में हस्तक्षेप से रोका जाए।
READ ALSO  दिल्ली हाई कोर्ट ने टैक्स असेसमेंट मामले में कांग्रेस की याचिका खारिज कर दी

याचिका में न्यायपालिका में पहले सामने आए भ्रष्टाचार के मामलों जैसे कि न्यायमूर्ति निर्मल यादव मामले का भी उल्लेख किया गया है, जिससे यह तर्क दिया गया है कि उच्च न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही की सख्त जरूरत है।

उल्लेखनीय है कि 22 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की गई प्रारंभिक जांच की जानकारी साझा की। इसमें घटनास्थल की तस्वीरें और वीडियो शामिल हैं, हालांकि नकदी की बरामदगी की पुष्टि नहीं की गई है।

READ ALSO  यूपी की अदालत ने एक व्यक्ति की हत्या के जुर्म में दो भाइयों को उम्रकैद की सजा सुनाई

न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए इसे उनकी छवि खराब करने की साजिश बताया है। अपने लिखित बयान में उन्होंने कहा कि आग मुख्य आवास में नहीं, बल्कि बाहरी हिस्से (आउटहाउस) में लगी थी और वहां कोई नकदी नहीं मिली। उन्होंने मीडिया में फैली खबरों को झूठा बताया और कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार की रिपोर्ट में भी नकदी बरामदगी का कोई उल्लेख नहीं है। उन्होंने इसे एक “स्मियर कैंपेन” बताते हुए अपनी प्रतिष्ठा और कार्य की निष्पक्ष जांच की मांग की है।

Law Trend
Law Trendhttps://lawtrend.in/
Legal News Website Providing Latest Judgments of Supreme Court and High Court

Related Articles

Latest Articles