वाहन के निर्माण के बारे में गलत विवरण मात्र मोटर दुर्घटना दावे को अस्वीकार करने का आधार नहीं है: सुप्रीम कोर्ट


एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मोटर दुर्घटना मुआवजा दावे में केवल वाहन के मॉडल का गलत उल्लेख याचिका खारिज करने का वैध आधार नहीं हो सकता, यदि वाहन की पहचान अन्य विवरणों से स्पष्ट हो रही हो। अदालत ने इस टिप्पणी के साथ कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया, जिसमें सिर्फ वाहन के ‘मेक’ (मॉडल) में अंतर के कारण मुआवजा नकारा गया था।

यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट ने परमेश्वर सुब्राय हेगड़े बनाम न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड व अन्य मामले में दिया। यह अपील SLP (C) No. 27072/2024 के तहत दायर की गई थी, और इस पर सुनवाई न्यायमूर्ति जे. के. महेश्वरी तथा न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की खंडपीठ ने की।

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मामले की पृष्ठभूमि:

परमेश्वर सुब्राय हेगड़े एक सड़क दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हो गए थे। उन्होंने सिरसी स्थित मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण (M.V.C. No. 121/2014) में मुआवजा याचिका दायर की थी।
20 अगस्त 2015 को न्यायाधिकरण ने ₹40,000 का मुआवजा और 6% वार्षिक ब्याज देने का आदेश पारित किया।

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लेकिन कर्नाटक हाईकोर्ट की धारवाड़ बेंच ने 18 अप्रैल 2017 को अपने आदेश (MFA No. 103716/2015) में यह कहते हुए निर्णय को रद्द कर दिया कि याचिका में वाहन को ‘TATA Spacio’ बताया गया था, जबकि असल में वह ‘TATA Sumo’ था। हालांकि वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर KA-31/6059 दोनों में समान था।

कानूनी प्रश्न:

  1. क्या वाहन के मॉडल में गलती मुआवजा खारिज करने का आधार हो सकती है?
  2. क्या हाईकोर्ट का केवल इस आधार पर ट्रिब्यूनल का आदेश रद्द करना उचित था?
  3. सुप्रीम कोर्ट में अपील करने में हुई देरी का ब्याज भुगतान पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और फैसला:

सुप्रीम कोर्ट ने कहा:

“सिर्फ वाहन के मॉडल का गलत विवरण उस स्थिति में मुआवजा याचिका खारिज करने का आधार नहीं बन सकता, जब वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर एक ही हो और वही वाहन आपराधिक मामले में भी नामजद हो।”

अदालत ने यह भी कहा कि वास्तविकता में वाहन की पहचान का निर्धारण रजिस्ट्रेशन नंबर से होता है, न कि केवल मेक या मॉडल से।

सुप्रीम कोर्ट ने:

  • कर्नाटक हाईकोर्ट का फैसला रद्द कर दिया।
  • न्यायाधिकरण द्वारा दिया गया ₹40,000 मुआवजा और 6% वार्षिक ब्याज बहाल कर दिया।
  • चूंकि सुप्रीम कोर्ट में अपील करने में 1380 दिन (लगभग 4 साल) की देरी हुई थी, इसलिए देरी की अवधि के लिए ब्याज नहीं दिया जाएगा।
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अंततः, अदालत ने न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को आदेश दिया कि वह देरी के दौरान की ब्याज राशि को छोड़कर, शेष मुआवजा तत्काल भुगतान करे।

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