इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक कड़े शब्दों वाले फैसले में चकबंदी कार्यवाही को चुनौती देने वाली रिट याचिका में तथ्य छिपाने और अदालत को गुमराह करने के लिए केशव प्रसाद और अन्य पर ₹50,000 का जुर्माना लगाया। मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने याचिका को खारिज कर दिया और न्यायिक पारदर्शिता के महत्व को दोहराते हुए कहा, “धोखाधड़ी और न्याय कभी एक साथ नहीं हो सकते।”
यह मामला याचिकाकर्ताओं द्वारा कोविड-19 महामारी के दौरान सुल्तानपुर जिले के जमखुरी गांव में चकबंदी कार्यवाही में अनियमितताओं के आरोपों से उपजा है। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि इन कार्यवाहियों ने काश्तकार के रूप में उनके अधिकारों का उल्लंघन किया है और दावा किया है कि उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम, 1953 की धारा 9(क), 20 और 42 के तहत आदेश बिना किसी नोटिस के मनमाने ढंग से जारी किए गए थे।
कानूनी मुद्दों पर प्रकाश डाला गया
राज्य और गाँव सभा द्वारा प्रतिनिधित्व किए गए प्रतिवादियों ने याचिकाकर्ताओं के दावों का पर्याप्त सबूतों के साथ विरोध किया, जिसमें दिखाया गया कि:
1. पिछले मुकदमे को छिपाना: याचिकाकर्ता यह बताने में विफल रहे कि उन्होंने पहले भी उसी संपत्ति से संबंधित रिट याचिकाएँ दायर की थीं, जिन्हें खारिज कर दिया गया था।
2. धोखाधड़ी वाली गतिविधियाँ: याचिकाकर्ता धोखाधड़ी वाले भूमि अभिलेखों के लाभार्थी थे, जैसा कि पहले के समेकन आदेशों से पुष्टि होती है।
3. लंबित एफआईआर: याचिकाकर्ताओं के खिलाफ रिकॉर्ड में हेराफेरी के लिए आपराधिक कार्यवाही शुरू की गई थी, और इन मामलों के संबंध में कुछ को जेल भी भेजा गया था।
अदालत ने पाया कि ये चूक जानबूझकर गलत बयानी के बराबर थी जिसका उद्देश्य अनुकूल आदेश प्राप्त करना था।
अदालत की टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह ने याचिकाकर्ताओं के आचरण की तीखी आलोचना की, जिसमें न्यायिक प्रक्रिया के उनके दुरुपयोग पर प्रकाश डाला गया। स्थापित कानूनी सिद्धांतों का हवाला देते हुए, अदालत ने इस बात पर जोर दिया:
– छिपाने पर: “अदालत में आने वाले वादी को साफ हाथों से आना चाहिए। भौतिक तथ्यों को दबाना न्यायिक कार्यवाही की बुनियाद को ही नष्ट कर देता है।”
– न्यायिक सत्यनिष्ठा पर: “धोखाधड़ी सब कुछ उजागर कर देती है। कानून की अदालत जानबूझकर झूठ और छल के कारण होने वाले अन्याय को माफ या कायम नहीं रख सकती।”
– सार्वजनिक संसाधनों पर: अदालत ने तुच्छ मुकदमेबाजी के कारण न्यायिक संसाधनों की बर्बादी पर दुख जताया, जिसमें कहा गया कि ऐसे मामले न्यायनिर्णय की प्रतीक्षा कर रहे वास्तविक शिकायतों को कम करते हैं।
जुर्माना और निर्देश
अदालत ने न केवल याचिका खारिज की, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के प्रयास के लिए याचिकाकर्ताओं पर गांव सभा को देय ₹50,000 का जुर्माना भी लगाया। इसके अतिरिक्त, अदालत ने याचिकाकर्ताओं को संबंधित संपत्ति से संबंधित सभी लंबित मुकदमों की स्थिति का खुलासा करने और आगे तुच्छ याचिका दायर करने से परहेज करने का निर्देश दिया।
केस का विवरण
– केस का शीर्षक: केशव प्रसाद एवं अन्य बनाम चकबंदी आयुक्त एवं अन्य
– केस संख्या: WRIT-B संख्या 853/2024
– बेंच: न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह
– याचिकाकर्ताओं के वकील: अधिवक्ता राहुल रोशन दुबे
– प्रतिवादियों के वकील: डॉ. कृष्ण कुमार सिंह (राज्य), अधिवक्ता मोहन सिंह (गांव सभा)