दिल्ली की एक अदालत 12 अगस्त को आबकारी नीति घोटाले में अरविंद केजरीवाल के खिलाफ सीबीआई के आरोपपत्र की समीक्षा करेगी

दिल्ली की एक अदालत ने 12 अगस्त को सुनवाई तय की है, जिसमें यह तय किया जाएगा कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) द्वारा दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया जाए या नहीं। यह फैसला दिल्ली आबकारी नीति घोटाले से जुड़े आरोपों के मद्देनजर आया है, जिसमें केजरीवाल और अन्य भ्रष्टाचार के आरोपों में फंसे हैं।

विशेष न्यायाधीश कावेरी बावेजा ने यह देखते हुए मामले को स्थगित कर दिया कि सीबीआई ने अभी तक आरोपपत्र के लिए सहायक दस्तावेज जमा नहीं किए हैं। सीबीआई ने हाल ही में घोटाले की अपनी जांच पूरी की है और इस आरोपपत्र को मामले में अपनी अंतिम प्रस्तुति के रूप में चिह्नित किया है।

इस जटिल मामले में कई दाखिल किए गए हैं, जिनमें एक मुख्य आरोपपत्र और चार पूरक आरोपपत्र शामिल हैं। दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और तेलंगाना एमएलसी के कविता सहित प्रमुख हस्तियों पर भी कथित अनियमितताओं के संबंध में आरोप लगाए गए हैं।

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सीबीआई के अनुसार, आरोपों में 16 मार्च, 2021 को केजरीवाल और टीडीपी सांसद तथा शराब व्यवसायी मगुंटा श्रीनिवासलु रेड्डी के बीच हुई बैठक शामिल है। दिल्ली सचिवालय में आयोजित इस बैठक के दौरान, रेड्डी ने कथित तौर पर अपने शराब व्यवसाय को लाभ पहुंचाने के लिए आबकारी नीति 2021-22 में हेरफेर करने में केजरीवाल की सहायता मांगी थी। आरोप पत्र में दावा किया गया है कि केजरीवाल ने रेड्डी को कविता के साथ समन्वय करने का निर्देश दिया, जो आबकारी नीति तैयार करने में शामिल थी। जांच में आगे आरोप लगाया गया है कि केजरीवाल ने रेड्डी को अपनी राजनीतिक पार्टी आम आदमी पार्टी (आप) को वित्तीय योगदान देने का निर्देश दिया था।

सीबीआई का तर्क है कि आबकारी नीति को प्रभावित करने के लिए आप नेताओं और अन्य लोक सेवकों को 90-100 करोड़ रुपये की रिश्वत का अग्रिम भुगतान किया गया था। इन निधियों को कथित तौर पर विजय नायर, अभिषेक बोइनपल्ली और दिनेश अरोड़ा सहित विभिन्न सह-आरोपियों के माध्यम से भेजा गया था। एजेंसी का सुझाव है कि इन अवैध भुगतानों को बाद में एल-1 लाइसेंस रखने वाले थोक विक्रेताओं के लाभ मार्जिन से विभिन्न तरीकों जैसे अतिरिक्त क्रेडिट नोट, बैंक हस्तांतरण और दक्षिण लॉबी से जुड़े षड्यंत्रकारियों द्वारा प्रबंधित अनसुलझे खातों के माध्यम से वसूल किया गया।

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सीबीआई का दावा है कि नीति के तीन मुख्य हितधारकों- शराब निर्माताओं, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के बीच एक कार्टेल बनाया गया था, जो प्रावधानों का उल्लंघन कर रहा था और नीति के इरादे को कमजोर कर रहा था। कथित तौर पर इस मिलीभगत से राज्य के खजाने को काफी वित्तीय नुकसान हुआ और साजिश में शामिल लोक सेवकों और अन्य पक्षों को अवैध लाभ हुआ।

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