कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. यदियुरप्पा ने शनिवार को पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत मुकदमों को एक वर्ष के भीतर पूरा करने की अनिवार्य समयसीमा को अपने खिलाफ दर्ज मामले में लागू करने पर आपत्ति जताई।
पॉक्सो अधिनियम की धारा 35 में प्रावधान है कि संज्ञान लेने की तारीख से एक वर्ष के भीतर ट्रायल पूरा होना चाहिए। हालांकि, यदियुरप्पा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सी.वी. नागेश ने न्यायमूर्ति एम.आई. अरुण की अदालत में दलील दी कि यह अवधि तभी शुरू होती है जब आरोप तय होते हैं। चूँकि इस मामले में संज्ञान पर रोक लगी हुई है, इसलिए एक वर्ष की समयसीमा अभी लागू नहीं हुई।
यह मामला मार्च 2024 में दायर उस शिकायत से जुड़ा है जिसमें एक महिला ने आरोप लगाया था कि यदियुरप्पा ने अपने आवास पर मुलाकात के दौरान उसकी नाबालिग बेटी को अनुचित तरीके से छुआ। इस शिकायत पर बेंगलुरु पुलिस ने 14 मार्च 2024 को एफआईआर दर्ज की थी।

यदियुरप्पा की ओर से नागेश ने यह भी तर्क दिया कि शिकायतकर्ता का अधिकारियों, पुलिसकर्मियों और अपने ही परिजनों तक के खिलाफ कई शिकायतें दर्ज कराने का इतिहास है। उन्होंने अदालत से कहा कि इन आरोपों को सतर्कता से देखा जाए। उन्होंने शिकायत दर्ज कराने में हुई देरी पर भी सवाल उठाया, यह बताते हुए कि शिकायतकर्ता ने घटना वाले दिन ही पुलिस आयुक्त से मुलाकात की थी, लेकिन एफआईआर बाद में दर्ज कराई।
विशेष लोक अभियोजक रवीवर्मा कुमार ने इन दलीलों का विरोध करते हुए कहा कि ऐसे तर्क पहले भी अदालत में विचाराधीन रह चुके हैं। उन्होंने फरवरी में न्यायमूर्ति एम. नागप्रसन्ना के आदेश का हवाला दिया, जिसमें ताज़ा संज्ञान लेने का निर्देश दिया गया था और इससे पहले की कार्यवाही को वैध ठहराया गया था।
दोनों पक्षों को सुनने के बाद न्यायमूर्ति एम.आई. अरुण ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 2 सितंबर की तारीख तय की।