सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है कि किसी गवाह की गवाही केवल इस आधार पर खारिज नहीं की जा सकती कि वह मृतक का रिश्तेदार है। न्यायालय ने कहा कि “हितधारक” और “सत्यवादी” दो अलग-अलग कानूनी अवधारणाएं हैं। अदालत ने एक हत्या के दोषी द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, और ट्रायल कोर्ट व पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए निर्णयों को बरकरार रखा।
यह निर्णय न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने आपराधिक अपील संख्या 667/2018: नितु उर्फ बित्तु उर्फ बिंतु बनाम हरियाणा राज्य मामले में सुनाया। अपीलकर्ता ने 13 मार्च 2014 के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 302 के तहत दोषी ठहराया गया था।
पृष्ठभूमि
यह मामला 30 अगस्त 2008 को दर्ज प्राथमिकी से संबंधित है। अपीलकर्ता पर गुरमीत कौर की हत्या का आरोप लगा था। ट्रायल कोर्ट ने 14 अक्टूबर 2009 को दिए फैसले में कुछ सह-आरोपियों को बरी कर दिया, लेकिन अपीलकर्ता को दोषी ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई। हाईकोर्ट ने उस निर्णय की पुष्टि की थी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ
अदालत ने रिकॉर्ड में मौजूद साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद अपील को खारिज कर दिया। प्राथमिकी दर्ज करने में हुई 12 घंटे की देरी के बारे में कोर्ट ने कहा:
“एफआईआर दर्ज करने में 12 घंटे की देरी को ऐसा नहीं माना जा सकता जिससे अभियोजन का मामला संदेहास्पद हो जाए।”
मृतका के पुत्र सुखविंदर सिंह (पीडब्ल्यू-4) की गवाही को लेकर कोर्ट ने कहा:
“निस्संदेह वह मृतका का पुत्र है, लेकिन केवल इसी आधार पर उसकी गवाही खारिज नहीं की जा सकती। ‘हितधारक’ और ‘सत्यवादी’ दो अलग बातें हैं। एक रिश्तेदार अभियोजन की सफलता में रुचि रख सकता है, फिर भी वह सत्य बोल सकता है।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि रिकॉर्ड में ऐसा कुछ नहीं है जिससे PW-4 की विश्वसनीयता पर संदेह हो। उन्होंने स्पष्ट रूप से बताया कि आरोपी ने कुल्हाड़ी जैसे धारदार हथियार से मृतका के सिर पर वार किए थे, जो बाद में पुलिस द्वारा बरामद किया गया। मेडिकल रिपोर्ट से यह भी सिद्ध हुआ कि मृतका को गंभीर चोटें आई थीं, जो उसकी मृत्यु का कारण बनीं।
इसके अतिरिक्त, मृतका के पति (PW-3), जो इस मामले के शिकायतकर्ता भी हैं, ने भी अभियोजन पक्ष का समर्थन करते हुए आरोपी को दोषी सिद्ध करने में मदद की।
निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने कहा:
“उपरोक्त तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए, हम हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं देखते।”
हालांकि, कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि दीर्घकालीन कारावास को देखते हुए अपीलकर्ता को राज्य सरकार द्वारा निर्धारित रिहाई/छूट की नीति के अनुसार छूट (remission) प्राप्त करने का अधिकार रहेगा:
“हम आश्वस्त हैं कि जब भी अपीलकर्ता उक्त लाभ प्राप्त करने के योग्य होगा, उसे बिना किसी विलंब के प्रदान किया जाएगा।”
न्यायालय ने अपील को खारिज करते हुए सभी लंबित याचिकाओं को भी निस्तारित कर दिया।
मामले का शीर्षक: नितु उर्फ बित्तु उर्फ बिंतु बनाम हरियाणा राज्य
मामला संख्या: आपराधिक अपील संख्या 667/2018