मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 3 सितंबर, 2025 को एक महत्वपूर्ण फैसले में बलात्कार के आरोपी को बरी करने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा है। हाईकोर्ट ने यह माना कि किसी पहले से विवाहित महिला से शादी का वादा करना कानून के तहत “तथ्य की गलत धारणा” नहीं है, जिसके आधार पर शारीरिक संबंध को बलात्कार माना जा सके। न्यायमूर्ति विवेक अग्रवाल और न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह की खंडपीठ ने कहा कि जब अभियोक्त्री को यह पता था कि उसके मौजूदा पति से तलाक के बिना कानूनी रूप से विवाह संभव नहीं है, तो ऐसे में बने शारीरिक संबंध को सहमति से बना संबंध ही माना जाएगा।
यह आपराधिक अपील अभियोक्त्री (“पीड़िता X”) द्वारा द्वितीय अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश, गाडरवारा, जिला नरसिंहपुर के 26 नवंबर, 2024 के फैसले के खिलाफ दायर की गई थी। निचली अदालत ने प्रतिवादी, लक्ष्मण कहार को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376(2)(n) और 376(2)(च) के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया था।
मामले की पृष्ठभूमि
अभियोजन का मामला 1 मई, 2023 को दर्ज एक प्राथमिकी (FIR) पर आधारित था। अभियोक्त्री ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी लक्ष्मण कहार ने शादी का झांसा देकर पिछले चार वर्षों से उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए थे। उसने कहा कि 16 मार्च, 2023 को आरोपी उसे अपने घर ले गया और फिर से बलात्कार किया। जब उसने शादी के लिए दबाव डाला, तो आरोपी ने अपने परिवार की असहमति का बहाना बनाया। प्राथमिकी के अनुसार, पीड़िता ने 17 मार्च, 2023 को ही रिपोर्ट दर्ज कराने की कोशिश की थी, लेकिन प्रतिवादी द्वारा समझौते की पेशकश के कारण उसने डेढ़ महीने की देरी की।

जब निचली अदालत ने प्रतिवादी को बरी कर दिया, तो अभियोक्त्री ने उसे दोषी ठहराने की मांग के साथ हाईकोर्ट में यह अपील दायर की।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ता के वकील, श्री अविनाश गुप्ता ने तर्क दिया कि पीड़िता (PW-1) और उसके भाइयों (PW-2 और PW-4) के बयान विश्वसनीय थे और आरोपों को संदेह से परे साबित करने के लिए पर्याप्त थे। यह दलील दी गई कि प्रतिवादी ने शादी के झूठे वादे के तहत यह अपराध किया था। अपीलकर्ता के वकील ने दीपक गुलाटी बनाम हरियाणा राज्य और उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नौशाद मामलों में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि तथ्य की गलत धारणा के तहत प्राप्त सहमति वैध सहमति नहीं है और यह बलात्कार के समान है।
वहीं, राज्य सरकार के वकील श्री अरविंद सिंह और प्रतिवादी के वकील श्री मुकुल सिंह ने निचली अदालत के बरी करने के फैसले का समर्थन किया।
न्यायालय का विश्लेषण और टिप्पणियाँ
न्यायमूर्ति अवनींद्र कुमार सिंह द्वारा लिखे गए फैसले में, हाईकोर्ट ने रिकॉर्ड पर मौजूद सबूतों की सावधानीपूर्वक जांच की। अभियोक्त्री (PW-1) ने गवाही दी कि वह 35 वर्ष की है, उसकी शादी उन्नीस साल पहले हुई थी और उसके तीन बेटे हैं। उसका पति लगभग दस साल पहले उसे छोड़कर चला गया था। उसने यह भी स्वीकार किया कि प्रतिवादी के साथ उसके चार साल से शादी के वादे पर संबंध थे।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि जिरह के दौरान, अभियोक्त्री ने यह स्वीकार किया कि उसके पति के साथ तलाक की कार्यवाही शुरू हो चुकी थी और गुजारा-भत्ता का मामला लंबित था, लेकिन उसकी शादी कानूनी रूप से भंग नहीं हुई थी। उसने कहा, “यह सच है कि चूंकि मेरा मेरे पति से तलाक नहीं हुआ है, इसलिए प्रतिवादी नंबर 2 मुझसे शादी नहीं कर सकता था।”
अदालत ने अभियोक्त्री के भाइयों के बयानों पर भी ध्यान दिया। PW-2 ने कहा कि वह जानता था कि प्रतिवादी ने शादी के बहाने अवैध संबंध बनाए, लेकिन उसे व्यक्तिगत रूप से उनके रिश्ते की प्रकृति के बारे में पता नहीं था। PW-4, जिसे पक्षद्रोही घोषित कर दिया गया, ने कहा कि उसकी बहन प्रतिवादी से शादी करना चाहती थी क्योंकि उसके पति ने उसे छोड़ दिया था।
चिकित्सीय साक्ष्य ने भी अभियोजन के मामले का समर्थन नहीं किया। अभियोक्त्री की जांच करने वाली डॉ. रश्मि राय (PW-5) ने गवाही दी कि अभियोक्त्री के शरीर पर कोई बाहरी या आंतरिक चोट नहीं थी। जिरह में डॉ. राय ने स्पष्ट किया कि चिकित्सा जांच के आधार पर बलात्कार के बारे में कोई राय नहीं दी जा सकती।
पीठ ने इस मामले और अपीलकर्ता द्वारा उद्धृत उदाहरणों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर पाया। अदालत ने कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य बनाम नौशाद मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को इसलिए दोषी पाया था क्योंकि उसकी शुरू से ही अभियोक्त्री से शादी करने की कोई मंशा नहीं थी। हालांकि, मौजूदा मामले में हाईकोर्ट ने तर्क दिया कि विवाह के लिए एक कानूनी बाधा मौजूद थी।
फैसले में कहा गया है, “अभियोक्त्री और अन्य गवाहों ने यह स्वीकार किया है कि अभियोक्त्री पहले से शादीशुदा थी और उसके तीन बच्चे थे… जब अभियोक्त्री का अपने पति से तलाक नहीं हुआ था, तो प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा उससे शादी करने की कोई संभावना नहीं थी। इसलिए, इस मामले में प्रतिवादी नंबर 2 द्वारा अभियोक्त्री को कोई गलत धारणा/गलत बयानी देने का कोई मामला नहीं बनता है।”
फैसला
हाईकोर्ट ने माना कि निचली अदालत ने सबूतों का सही मूल्यांकन किया था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा बिहारी नाथ गोस्वामी बनाम शिव कुमार सिंह मामले में निर्धारित सिद्धांत का उल्लेख करते हुए, अदालत ने कहा कि जब सबूतों के आधार पर दो विचार संभव हों, तो अभियुक्त के पक्ष में जाने वाले विचार को अपनाया जाना चाहिए।
सबूतों के मूल्यांकन में कोई त्रुटि या हस्तक्षेप के लिए कोई ठोस कारण न पाते हुए, अदालत ने अपील को प्रवेश स्तर पर ही खारिज कर दिया।