उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से उन मामलों में नाबालिग लड़कों को गिरफ्तार करने के विकल्पों पर विचार करने का आग्रह किया है, जहां वे नाबालिग लड़कियों के साथ डेटिंग करते हैं और लड़कियों के माता-पिता द्वारा शिकायत दर्ज कराई जाती है। मुख्य न्यायाधीश रितु बहारी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की अध्यक्षता में एक अदालती सत्र के दौरान पूछताछ की गई।
अदालत का यह निर्देश अधिवक्ता मनीषा भंडारी द्वारा प्रस्तुत एक जनहित याचिका (पीआईएल) के इर्द-गिर्द चर्चाओं से उभरा है। जनहित याचिका में ऐसी परिस्थितियों में नाबालिग लड़कों की गिरफ्तारी के पीछे के तर्क को चुनौती दी गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि ये कार्रवाई यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (POCSO) अधिनियम, विशेष रूप से धारा 3, 4, 5, 6 और 7 के तहत विशिष्ट अपराधों के अनुरूप नहीं है।
कार्यवाही के दौरान, हाईकोर्टने सुझाव दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 के तहत एक बयान दर्ज करना पर्याप्त हो सकता है, यह प्रस्तावित करते हुए कि “अधिक से अधिक, उसे इन चीजों में लिप्त न होने की सलाह देने के लिए बुलाया जा सकता है, लेकिन उसे गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।”
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न्यायालय ने राज्य सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा करने तथा डेटिंग परिदृश्यों में नाबालिगों के अनावश्यक अपराधीकरण से बचने के लिए पुलिस विभाग को सामान्य निर्देश जारी करने की संस्तुति की। इस कदम का उद्देश्य बच्चों की सुरक्षा तथा ऐसे मामलों में अनावश्यक कठोरता से बचने के बीच संतुलन बनाना है जो गंभीर अपराध नहीं हैं।