उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया है कि नैनीताल जिले के सुन्दरखाल गांव से लोगों के विस्थापन की प्रक्रिया देखने के लिए गठित समिति में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के सदस्यों को शामिल किया जाए, ताकि प्रभावित ग्रामीणों को वनाधिकार अधिनियम के तहत पट्टे मिलने और आवश्यक मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध होने की संभावना सुनिश्चित हो सके।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंद्र और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने कहा कि DLSA की मौजूदगी से यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि ग्रामीणों को बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित न रहना पड़े।
यह समिति वन क्षेत्रों में निवासरत लोगों के अधिकारों और दावों पर सुनवाई के लिए गठित की गई थी।
सुनवाई के दौरान अदालत ने राज्य सरकार से यह भी पूछा कि वर्ष 2014 में गठित समिति की सिफारिशों पर अब तक क्या निर्णय लिया गया है। उस समिति ने सुन्दरखाल के ग्रामीणों की समस्याओं को देखते हुए उनके पुनर्वास का निर्णय लिया था।
यह जनहित याचिका इंडिपेंडेंट मीडिया सोसाइटी की ओर से दायर की गई थी, जिसमें कहा गया कि सुन्दरखाल गांव में 1975 से रह रहे लोग आज भी बिजली, पानी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैं। दूरस्थ और अत्यंत दुर्गम क्षेत्र में बसे होने के कारण ग्रामीण वर्षों से पुनर्वास की मांग कर रहे हैं।
ग्रामीणों का आरोप है कि 2014 में पुनर्वास का निर्णय होने के बावजूद न तो आज तक उन्हें स्थानांतरित किया गया और न ही आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध कराई गईं। हाईकोर्ट का यह निर्देश विस्थापन और पुनर्वास की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।

