गौहाटी हाईकोर्ट ने असम, अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम को अंतरराज्यीय सीमाओं पर स्थित वन क्षेत्रों से अतिक्रमण हटाने के लिए एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का निर्देश दिया है। यह आदेश मंगलवार को दो जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान दिया गया।
मुख्य न्यायाधीश अशुतोष कुमार और न्यायमूर्ति अरुण देव चौधरी की पीठ ने आदेश में कहा, “चारों राज्यों के मुख्य सचिवों और वन विभागों के प्रमुखों सहित संबंधित अधिकारियों की उच्च स्तरीय बैठक बुलाकर एक समग्र योजना बनाएं, ताकि वन क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त किया जा सके।”
यह निर्देश उस समय आया है जब असम की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार राज्य में सरकारी और वन भूमि से अतिक्रमण हटाने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चला रही है। मंगलवार को असम-नागालैंड सीमा के पास स्थित उरियमघाट में सबसे बड़ा अतिक्रमण हटाने का अभियान शुरू हुआ, जहां 1,500 हेक्टेयर वन भूमि से 2,500 से अधिक अवैध निर्माण हटाए जाएंगे।

जनहित याचिकाएं असम में वन भूमि पर अवैध कब्जों को लेकर दायर की गई थीं। 2018 में गुवाहाटी स्थित एनजीओ ‘असम बासाओक’ और 2023 में श्रीभूमि जिले के दो निवासियों ने यह याचिकाएं दाखिल की थीं। हालांकि, जुलाई 2023 में कोर्ट ने पाया कि असम की अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड और मिजोरम के साथ साझा सीमाओं पर स्थित वन क्षेत्रों में भी व्यापक अतिक्रमण हुआ है। इसके बाद कोर्ट ने इन तीनों राज्यों को भी मामले में पक्षकार बना दिया।
कोर्ट ने यह भी कहा कि चारों राज्यों के अधिकारियों के बीच पहले ही कई दौर की बैठकें हो चुकी हैं और बातचीत के जरिए समाधान संभव है। “इस न्यायालय का विश्वास है कि सार्थक संवाद से कोई भी समस्या अनसुलझी नहीं रह सकती,” पीठ ने टिप्पणी की।
कोर्ट ने यह भी सराहा कि इन बैठकों के दौरान किसी राज्य ने सीमा विवाद का मुद्दा नहीं उठाया। असम की इन तीनों राज्यों के साथ सीमाएं लगती हैं और वर्तमान में सीमा विवादों को सुलझाने के लिए बातचीत चल रही है।
पीठ ने आदेश में कहा, “सीमा विवाद अपने समय पर सुलझा लिए जाएंगे, लेकिन उससे पहले सबसे महत्वपूर्ण यह है कि राज्यों के अधिकार क्षेत्र में आने वाले वन क्षेत्रों को अतिक्रमण से मुक्त किया जाए।”
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का भी उल्लेख किया जिसमें वन क्षेत्रों को संरक्षित रखने की बात कही गई है। कोर्ट ने चेतावनी दी कि जब तक पूरे वन क्षेत्र को अतिक्रमण मुक्त नहीं किया जाएगा, तब तक ‘बायोटिक प्रेशर’ को कम नहीं किया जा सकता।
कोर्ट ने चारों राज्यों को निर्देश दिया कि वे समिति द्वारा लिए गए निर्णयों और उठाए गए कदमों की जानकारी अगली सुनवाई की तिथि 4 नवंबर को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करें।