स्थानीय मछुआरा समुदाय की चिंताओं के समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने ठाणे क्रीक ब्रिज III (TCB III) परियोजना से प्रभावित मछुआरों के नुकसान और मुआवजे का आकलन करने के लिए टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान (TISS) को नियुक्त किया है।
मुख्य न्यायाधीश बी.पी. कोलाबावाला और न्यायमूर्ति फिरदौश पूनावाला की खंडपीठ ने हाल ही में पारित आदेश में TISS को निर्देश दिया कि वह प्रभावित मछुआरों को हुए नुकसान और हानि का विस्तृत विवरण तैयार करे और उचित मुआवजे की सिफारिश करे। संस्थान को 21 नवंबर तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करने का आदेश दिया गया है।
अदालत ने कहा, “यह स्पष्ट रूप से निर्धारित किया गया है कि TCB III परियोजना का प्रभावित मछुआरों की आजीविका पर प्रभाव पड़ेगा।” हालांकि अदालत ने माना कि नुकसान का सटीक मूल्यांकन करना संभव नहीं है, फिर भी सभी प्रासंगिक कारकों को ध्यान में रखते हुए हानि का आंकलन करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
TCB III परियोजना, जो सायन-पनवेल राजमार्ग पर छह लेन का ओवरपास है, अपने अंतिम चरण में है और इसका एक हिस्सा पहले ही यातायात के लिए खोला जा चुका है। महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (MSRDC) द्वारा संचालित इस परियोजना का स्थानीय मछुआरों द्वारा उनके पारंपरिक मछली पकड़ने के अधिकारों के हनन को लेकर विरोध किया गया था।
स्थानीय मछुआरों की सहकारी संस्था ‘मरियाई मच्छीमार सहकारी संस्था मर्यादित’ ने 2021 में हाईकोर्ट में याचिका दायर कर मछुआरों के कल्याण संबंधी चिंताओं को उठाया था। अगस्त 2021 में हाईकोर्ट ने परियोजना को आगे बढ़ाने की अनुमति तो दी थी, लेकिन यह भी स्वीकार किया था कि इससे मछुआरों की आजीविका प्रभावित होगी और केंद्रीय समुद्री मत्स्य अनुसंधान संस्थान (CMFRI) के अधीन एक मुआवजा समिति गठित करने का निर्देश दिया था।
मार्च 2022 में अदालत ने MSRDC को निर्देश दिया था कि वह 900 से अधिक प्रभावित मछुआरा परिवारों को ₹10 करोड़ की अंतरिम राहत प्रदान करे, जिसके तहत प्रत्येक परिवार को ₹1 लाख का मुआवजा दिया गया। हालांकि अंतिम मुआवजे का आकलन अभी लंबित था।
CMFRI ने 2023 में अपनी अंतिम रिपोर्ट में स्वीकार किया कि पुल निर्माण से मछली पकड़ने की गतिविधियां प्रभावित हुई हैं, लेकिन नुकसान या मुआवजे की सटीक राशि का निर्धारण नहीं किया जा सका। MSRDC के वरिष्ठ अधिवक्ता मिलिंद साठे ने दलील दी कि CMFRI की रिपोर्ट में कोई कमी नहीं है और आगे कोई मुआवजा आवश्यक नहीं है।
वहीं, न्याय मित्र और वरिष्ठ अधिवक्ता शरण जगतियानी ने याचिकाकर्ताओं की मांग का समर्थन किया कि TISS द्वारा विस्तृत मूल्यांकन कराया जाए, क्योंकि CMFRI रिपोर्ट में अस्थायी और स्थायी दोनों प्रकार के नुकसान का उल्लेख था, लेकिन क्षति की मात्रा नहीं बताई गई थी।
अदालत ने यह भी उल्लेख किया कि मुंबई कोस्टल रोड परियोजना में TISS द्वारा किया गया अध्ययन सफल रहा था, जहां संस्थान ने परियोजना के काफी आगे बढ़ जाने के बाद भी नुकसान और मुआवजे का आकलन किया था। अदालत ने टिप्पणी की, “TISS को इस मामले में भी इसी प्रकार का प्रयास करना चाहिए।”
TISS को CMFRI रिपोर्ट और महाराष्ट्र सरकार द्वारा परियोजना प्रभावित मछुआरों के लिए राज्य-स्तरीय मुआवजा नीति पर जारी संकल्प का संदर्भ लेने की अनुमति दी गई है।