सुप्रीम कोर्ट ने उन मामलों को लेकर स्वतः संज्ञान लिया है, जिनमें जांच एजेंसियां वकीलों को उनके मुवक्किलों को दी गई कानूनी राय या जांच के दौरान उनकी भूमिका के संबंध में समन जारी कर रही हैं। यह मामला “In Re: Summoning Advocates Who Give Legal Opinion or Represent Parties During Investigation of Cases and Related Issues” [SMW(Cal) 2/2025] शीर्षक से पंजीकृत किया गया है और इसकी सुनवाई 14 जुलाई को निर्धारित है।
इस मामले की सुनवाई भारत के मुख्य न्यायाधीश भुषण रमकृष्ण गवई, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति एन.वी. अंजनिया की पीठ करेगी।
इस मुद्दे की शुरुआत 25 जून को हुई थी जब न्यायमूर्ति के.वी. विश्वनाथन और न्यायमूर्ति एन.के. सिंह की पीठ के समक्ष एक मामले की सुनवाई के दौरान यह बात सामने आई कि गुजरात पुलिस ने एक आरोपी का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील को समन भेजा है। पीठ ने इस पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वकीलों को समन भेजना कानून व्यवसाय की स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है और न्याय के निष्पक्ष प्रशासन पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। अदालत ने उस वकील को भेजे गए समन पर रोक लगा दी और इस व्यापक मुद्दे को भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष भेजा।

इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 4 जुलाई को इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेते हुए मामला पंजीकृत किया।
इस विवाद को प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की हाल की कार्रवाई ने और बढ़ा दिया, जिसमें एजेंसी ने वरिष्ठ अधिवक्ताओं अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को उनकी दी गई कानूनी सलाह के संबंध में समन भेजा था। इस कदम की कानूनी समुदाय ने कड़ी निंदा की और कई बार एसोसिएशनों ने विरोध दर्ज कराया। इसके जवाब में, ईडी ने समन वापस ले लिया और एक परिपत्र जारी कर यह स्पष्ट किया कि भविष्य में किसी भी अधिवक्ता को ईडी निदेशक की पूर्व स्वीकृति के बिना समन जारी नहीं किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में लंबित यह मामला अब इस बात को लेकर गंभीर सवाल उठाता है कि पेशेवर क्षमता में कार्य कर रहे वकीलों की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित की जाए और जांच एजेंसियों की शक्तियों की सीमाएं क्या होनी चाहिए, खासकर जब मामला कानूनी परामर्श से जुड़ा हो।