सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस निर्णय पर रोक लगा दी है जिसमे कहा गया था कि त्वचा से त्वचा के छुए बगैर नाबालिग के अंग को छूना यौन उत्पीड़न नही है। बॉम्बे हाई कोर्ट ने पास्को एक्ट के मामले में आरोपी को बरी कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी कर 14 दिनों में जवाब दाखिल करने को कहा है। साथ ही अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर करने की अनुमति दी है।
कोर्ट के चीफ जस्टिस एस ए बोवड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ के समक्ष अटार्नी जनरल ने इस मामले का जिक्र करते हुए कहा कि हाई कोर्ट का आदेश सही नही है,इससे खतरनाक नजीर बन जाएगी।
पीठ ने वेणुगोपाल के दलीलों को स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ द्वारा आरोपी को जमानत देने के आदेश पर रोक लगा दी है। और पीठ ने वेणुगोपाल को विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने की अनुमति प्रदान कर दी है।
इसी मध्य यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी है। अधिवक्ता मंजू जेटली द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया है कि हाई कोर्ट के इस निर्णय का समाज और जनता में व्यापक प्रभाव होगा। वहीं राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी इस फैसले के विरुद्ध अपील दाखिल करने का निर्णय लिया है।
हाई कोर्ट ने क्या कहा था
बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ की जस्टिस पुष्पा गनेड़ीवाला ने अपने आदेश में कहा था कि आरोपी ने बच्ची के शरीर को उसके कपड़े हटाए बगैर छुआ था इस कारण इसे यौन उत्पीड़न नही कहा जा सकता है। यह आईपीसी की धारा 354 के तहत महिला की गरिमा को ठेस पहुँचाने का अपराध बनता है। हाई कोर्ट ने सेशन कोर्ट के आदेश में संशोधन करते हुए 39 वर्षीय व्यक्ति को 12 वर्षीय किशोरी के यौन उत्पीड़न के लिए 3 साल कैद की सजा सुनाते हुए पास्को एक्ट से रिहा कर दिया था।