इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 125 को लागू करने का मुख्य उद्देश्य बच्चों, महिलाओं,और बुजुर्ग अभिभावकों को तत्काल प्रभाव से राहत पहुँचाना के साथ उन्हें दरबदर भटकने से बचाना है।
कोर्ट ने कहा है कि यह धारा समरी प्रकृति की है। कोर्ट के जस्टिस डॉ वाईके श्रीवास्तव ने इस धारा के तहत फैमिली कोर्ट महोबा द्वारा पारित भरण पोषण के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है।
याची के खिलाफ उसकी पत्नी उमादेवी ने 125 सीआरपीसी के तहत मेन्टेन्स देने का दावा प्रधान परिवार न्यायाधीश के समक्ष पेश किया था। कोर्ट के 20 अक्टूबर 2016 को आदेश पारित किया जिसके बाद भी याची ने अपनी पत्नी को गुजारा भत्ता नही दिया तो उसने 125(3) के अंतर्गत अर्जी दाखिल कर आदेश का पालन कराने का अनुरोध किया। कोर्ट ने याची को मुआवजे का भुगतान करने का आदेश दिया तो उसने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर इस आदेश को चुनौती दी थी।
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साथ ही आदेश वापस लेने के लिए प्रधान पारिवारिक न्यायाधीश के समक्ष अर्जी दाखिल की ।सरकारी अधिवक्ता ने याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति करते हुए कहा कि याची ने मैंटेनेंस का भुगतान नही किया है। और उसने आदेश वापस लेने की अर्जी भी दायर कर रखी है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याची अधीनस्थ न्यायालय में दाखिल अर्जी को बल दे।