सुप्रीम कोर्ट ने राज्य बार काउंसिल चुनावों के लिए टाइमलाइन तय की, रिटायर्ड जजों की निगरानी में होंगे चुनाव

वकीलों की नियामक संस्थाओं के कामकाज को सुव्यवस्थित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को स्टेट बार काउंसिल (State Bar Council) के चुनावों के लिए एक सख्त और देशव्यापी समय सारिणी (Time Table) निर्धारित कर दी है। कई राज्यों में वर्षों से चुनाव न होने पर कड़ी नाराजगी जताते हुए, शीर्ष अदालत ने आदेश दिया है कि 17 स्टेट बार काउंसिलों में चुनाव प्रक्रिया जनवरी से अप्रैल 2026 के बीच हर हाल में पूरी की जानी चाहिए।

पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए, कोर्ट ने इन चुनावों को स्थानीय काउंसिलों के नियंत्रण से हटाकर रिटायर्ड जजों की अध्यक्षता वाली उच्च-स्तरीय समितियों (High-Powered Committees) की निगरानी में कराने का निर्देश दिया है।

जजों की निगरानी और सख्त समय सीमा

जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एनके सिंह की पीठ ने इस बात पर गंभीरता से ध्यान दिया कि कई राज्यों में बार काउंसिल के चुनाव लंबे समय से टल रहे हैं। पीठ ने स्पष्ट किया कि अब और कोई विस्तार (Extension) नहीं दिया जाएगा और चुनाव संपन्न कराने के लिए एक “सख्त राष्ट्रव्यापी समय सारिणी” लागू की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने 17 राज्यों में चुनाव का आदेश दिया है, जबकि पांच राज्यों को इस तत्काल समय सीमा से बाहर रखा गया है क्योंकि वहां स्थितियां अलग हैं:

  • बिहार: यहाँ चुनाव संपन्न हो चुके हैं।
  • छत्तीसगढ़: मतगणना जारी है और इसे एक महीने के भीतर पूरा करना होगा।
  • ओडिशा: यहाँ 2023 में ही चुनाव हुए थे।
  • मध्य प्रदेश और मणिपुर: यहाँ कार्यकाल अभी समाप्त नहीं हुआ है (क्रमशः 2026 और 2027 में देय)।
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पांच चरणों में होंगे चुनाव (Election Schedule)

सुप्रीम कोर्ट ने सुचारू संचालन के लिए 17 राज्यों के चुनावों को पांच चरणों में विभाजित किया है:

  • पहला चरण (31 जनवरी, 2026 तक): उत्तर प्रदेश और तेलंगाना।
  • दूसरा चरण (28 फरवरी, 2026 तक): आंध्र प्रदेश, दिल्ली, त्रिपुरा और पुडुचेरी।
  • तीसरा चरण (15 मार्च, 2026 तक): राजस्थान, पश्चिम बंगाल, झारखंड, कर्नाटक, गुजरात और पंजाब एवं हरियाणा।
  • चौथा चरण (31 मार्च, 2026 तक): मेघालय और महाराष्ट्र।
  • पांचवां चरण (30 अप्रैल, 2026 तक): तमिलनाडु, केरल और असम।

दो-स्तरीय निगरानी तंत्र (Two-Tier Supervisory Mechanism)

स्थानीय प्रभाव और विवादों से चुनाव प्रक्रिया को बचाने के लिए, कोर्ट ने दो स्तरों पर निगरानी की व्यवस्था की है।

  1. क्षेत्रीय स्तर पर: चुनाव रिटायर्ड हाईकोर्ट जजों की अध्यक्षता वाली ‘हाई-पावर्ड इलेक्शन कमेटियों’ की देखरेख में होंगे।
  2. राष्ट्रीय स्तर पर: एक ‘नेशनल हाई-पावर्ड सुपरवाइजरी कमेटी’ का गठन किया जाएगा। इसमें सुप्रीम कोर्ट के एक पूर्व जज, एक पूर्व हाईकोर्ट चीफ जस्टिस और एक वरिष्ठ वकील (जो चुनाव नहीं लड़ रहे हों) शामिल होंगे।
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यह राष्ट्रीय समिति विवादों पर अंतिम निर्णय लेगी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से दीवानी अदालतों (Civil Courts) और हाईकोर्ट को इन समितियों के निर्णयों के खिलाफ याचिकाओं पर सुनवाई करने से रोक दिया है।

डिग्रियों का सत्यापन और मतदान का अधिकार

सुनवाई के दौरान वकीलों की डिग्रियों के सत्यापन (Verification) का मुद्दा भी प्रमुखता से उठा। पीठ ने स्पष्ट किया कि हालांकि स्टेट बार काउंसिलों का यह कर्तव्य है कि वे डिग्रियों की जांच करें ताकि फर्जी वकीलों को हटाया जा सके, लेकिन इस प्रक्रिया को चुनाव टालने का आधार नहीं बनाया जा सकता।

कोर्ट ने निर्देश दिया कि सत्यापन की प्रक्रिया चुनाव की तैयारियों के साथ-साथ चलती रहेगी। इसके लिए लॉ यूनिवर्सिटियों को विशेष टीमें गठित करने को कहा गया है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि कोर्ट ने उन वकीलों को वोट देने की अनुमति दी है जिन्होंने सत्यापन के लिए आवेदन किया है। हालांकि, अगर बाद में उनकी डिग्री फर्जी पाई जाती है, तो उन्हें कानूनी परिणाम भुगतने होंगे।

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चुनाव प्रक्रिया का रोडमैप

कोर्ट ने चुनाव के आंतरिक चरणों के लिए भी समय सीमा तय कर दी है ताकि प्रक्रिया में देरी न हो:

  • मतदाता सूची की तैयारी/प्रकाशन: 15 दिन (20 नवंबर से शुरू)।
  • आपत्तियां (Objections): 7 दिन।
  • नामांकन दाखिल करना: 7 दिन।
  • अंतिम सूची का प्रकाशन: 1 दिन।
  • नाम वापसी: 3 दिन।
  • मतदान: वरीयता-वोट चुनाव (Preferential-vote election) के लिए 20 दिन।

बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) ने कोर्ट को आश्वासन दिया है कि वह समय पर और पारदर्शी चुनाव सुनिश्चित करने के लिए इन निर्देशों का पूरी तरह से पालन करेगा।

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