सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट के उस अंतरिम आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिसमें मुकर्जी नगर स्थित सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट्स को गिराने पर रोक लगाने से मना किया गया था।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति आलोक अराधे की पीठ के समक्ष यह याचिका सुनवाई के लिए आई थी। याचिका में हाईकोर्ट के 17 सितंबर के आदेश पर रोक लगाने की मांग की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को ध्वस्तीकरण की प्रक्रिया आगे बढ़ाने का रास्ता साफ हो गया है।
सिग्नेचर व्यू अपार्टमेंट्स दिल्ली विकास प्राधिकरण की 2010 में शुरू की गई बहुमंजिला आवासीय योजना का हिस्सा है। इस परियोजना में कुल 336 फ्लैट हैं, जिनमें 224 उच्च आय वर्ग (HIG) और 112 मध्यम आय वर्ग (MIG) के लिए हैं। यह 12 ब्लॉकों में निर्मित है।

2010 में आवंटन शुरू हुआ और 2012 में फ्लैटों का कब्ज़ा दिया गया। कब्ज़ा मिलने के दो से तीन साल के भीतर ही इमारतों में गंभीर संरचनात्मक समस्याएं सामने आने लगीं — बाहरी दीवारों की प्लास्टरिंग झड़ने लगी और कई ब्लॉकों के खंभों में दरारें पड़ गईं।
दिसंबर 2024 में दिल्ली हाईकोर्ट की एकल पीठ ने 18 दिसंबर 2023 को नगर निगम दिल्ली (MCD) द्वारा जारी आदेश को बरकरार रखा, जिसमें इन संरचनाओं को “खतरनाक” घोषित किया गया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि डीडीए को इन इमारतों को गिराने और पुनर्निर्माण करने का अधिकार है।
17 सितंबर 2025 को दिल्ली हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच ने अंतरिम आदेश जारी करते हुए ध्वस्तीकरण पर रोक लगाने से इनकार कर दिया और डीडीए को दो दिन के भीतर परिसर में एक कैंप कार्यालय स्थापित करने का निर्देश दिया, ताकि निवासियों के फ्लैट खाली करने से संबंधित दस्तावेज़ी कार्यवाही सुगमता से की जा सके।
“ध्वस्तीकरण पर कोई रोक नहीं होगी, हालांकि डीडीए इसे निवासियों को न्यूनतम असुविधा पहुंचाते हुए करेगा,” कोर्ट ने कहा।
हाईकोर्ट ने निवासियों को यह भी अनुमति दी कि वे फ्लैट खाली करते समय अपने घरेलू सामान, बाथरूम फिटिंग्स और विद्युत उपकरण आदि साथ ले जा सकते हैं।
निवासियों को 12 अक्टूबर 2025 तक अपने फ्लैट खाली करने का समय दिया गया। अदालत ने स्पष्ट किया कि “इस आदेश के तहत निवासियों का कोई भी आगे का ठहराव उनके स्वयं के जोखिम पर होगा, जैसा कि 7 अगस्त 2025 के आदेश में पहले ही स्पष्ट किया जा चुका है।”
याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट के 17 सितंबर के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी और ध्वस्तीकरण पर रोक की मांग की थी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया, जिससे हाईकोर्ट का आदेश यथावत बना रहा।
इसके साथ ही डीडीए अब दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशों के अनुरूप structurally unsafe इमारतों को गिराने और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकेगा।