सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कानूनी पेशे में नई पीढ़ी के वकीलों के व्यवहार पर चिंता जताई और कहा कि अब युवा वकील ट्रायल कोर्ट में जाकर वकालत की बारीकियाँ सीखने में रुचि नहीं रखते।
यह टिप्पणी अजय कुमार बनाम उत्तर प्रदेश राज्य मामले की सुनवाई के दौरान सामने आई, जब न्यायमूर्ति एसवीएन भट्टी और न्यायमूर्ति प्रसन्ना बी वराले की पीठ एक कैदी द्वारा दायर पैरोल याचिका पर विचार कर रही थी। उक्त कैदी को पोक्सो एक्ट के तहत दोषी ठहराते हुए 10 साल की सजा दी गई थी और उसकी अपील इलाहाबाद हाईकोर्ट में लंबित है।
याचिकाकर्ता के वकील ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पूर्व में हाईकोर्ट ने सितंबर 2024 में याचिकाकर्ता को उसकी पत्नी की सर्जरी के लिए 45 दिनों की पैरोल दी थी, लेकिन उसकी पत्नी की हीमोग्लोबिन की कमी के कारण सर्जरी नहीं हो पाई। अब वह सर्जरी 16 जून 2025 को निर्धारित है। वकील ने यह भी कहा कि सर्जरी के बाद छोटे बच्चों की देखभाल के लिए भी याचिकाकर्ता की उपस्थिति आवश्यक है।

हालांकि शीर्ष अदालत ने मानवीय आधार पर 15 जून से 21 जून 2025 तक एक सप्ताह की सीमित पैरोल मंजूर की, लेकिन साथ ही यह स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। अदालत ने कहा, “सामान्य प्रक्रिया यह है कि पहले सक्षम प्रशासनिक प्राधिकारी के समक्ष आवेदन किया जाए, उन्हें आपातकालीन कारणों से अवगत कराया जाए और फिर पैरोल प्राप्त की जाए।”
सुनवाई के दौरान जब वकील ने दो सप्ताह की पैरोल की मांग की, तो न्यायमूर्ति भट्टी ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि यह राहत केवल उनके सहन्यायाधीश के आग्रह पर दी गई है, अन्यथा वह इस याचिका को खारिज करने के पक्ष में थे।
जब वकील ने पूछा कि क्या वह एक सप्ताह की पैरोल के दौरान ही आगे की पैरोल बढ़वाने के लिए आवेदन कर सकते हैं, तो अदालत ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता सक्षम प्राधिकारी के समक्ष यथोचित आवेदन दे सकता है और यदि आवश्यकता हो तो बाद में पुनः अदालत का रुख कर सकता है।
न्यायमूर्ति भट्टी ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, “इस पीढ़ी की पूरी समस्या यही है कि वे प्रैक्टिस सीखने के लिए ट्रायल कोर्ट जाना ही नहीं चाहते।” यह टिप्पणी तब की गई जब पीठ को यह स्पष्ट करना पड़ा कि याचिकाकर्ता बाद में पुनः अदालत में आ सकता है, यदि वह पहले प्रशासनिक अधिकारियों के पास जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई 25 जून के बाद तय की है और याचिकाकर्ता को आगे की राहत के लिए उचित प्रक्रिया अपनाने की अनुमति दी है।