भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट किया है कि यदि किसी उच्च न्यायालय में कोई मामला मुख्य न्यायाधीश की स्वीकृति के बिना सूचीबद्ध किया गया है, तो उसमें पारित कोई भी आदेश अमान्य होगा। यह निर्णय न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ ने सिविल अपील संख्या 3243/2025 (SLP (C) No. 28399/2024 से उत्पन्न) में सुनाया। इस फैसले के तहत सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के 4 सितंबर 2024 के आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि वह अधिकार क्षेत्र से परे था। इस मामले में गार्डन रीच शिपबिल्डर्स एंड इंजीनियर्स लिमिटेड (GRSE Ltd.) ने अपीलकर्ता के रूप में और GRSE लिमिटेड वर्कमेन यूनियन और अन्य ने प्रतिवादी के रूप में भाग लिया।
पृष्ठभूमि
यह विवाद एक रिट याचिका (WPA No. 13605/2016) से जुड़ा है, जिसे कलकत्ता उच्च न्यायालय में कर्मचारियों ने दायर किया था। वे मांग कर रहे थे कि GRSE Ltd. उन कर्मचारियों के आश्रितों को अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति प्रदान करे, जिनकी मृत्यु हो चुकी थी। लेकिन, GRSE Ltd. ने इस मांग को अस्वीकार कर दिया, जिससे यह मामला न्यायालय तक पहुंचा।
कानूनी प्रक्रिया में हुई गड़बड़ी
- 21 फरवरी 2022 को कलकत्ता उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने इस रिट याचिका को लंबित रखा और सुप्रीम कोर्ट में चल रहे State Bank of India v. Sheo Shankar Tewari (2019) मामले की सुनवाई तक प्रतीक्षा करने का निर्देश दिया।
- इस निर्णय से असंतुष्ट याचिकाकर्ताओं ने Letters Patent के क्लॉज 15 के तहत अपील (MAT No. 850/2022) दायर की।
- 11 मार्च 2024 को एक डिवीजन बेंच ने दोनों पक्षों की सहमति से इस याचिका पर सीधे सुनवाई करने का निर्णय लिया।
- 4 सितंबर 2024 को डिवीजन बेंच ने आदेश दिया कि GRSE Ltd. को 51 में से 48 याचिकाकर्ताओं को अनुकंपा के आधार पर नियुक्त करना होगा।
- GRSE Ltd. ने इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, यह तर्क देते हुए कि डिवीजन बेंच के पास इस मामले की सुनवाई का अधिकार ही नहीं था।
मुख्य कानूनी प्रश्न
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कुछ महत्वपूर्ण कानूनी बिंदुओं की जांच की:

- न्यायालय का अधिकार क्षेत्र: क्या डिवीजन बेंच के पास वह रिट याचिका सुनने का अधिकार था, जिसे न तो एकल न्यायाधीश ने सौंपा था और न ही मुख्य न्यायाधीश ने आवंटित किया था?
- पक्षकारों की सहमति का प्रभाव: क्या किसी मामले की सुनवाई के लिए पक्षकारों की सहमति से न्यायालय को अधिकार प्राप्त हो सकता है?
- मुख्य न्यायाधीश की प्राथमिकता: क्या मुख्य न्यायाधीश की स्वीकृति के बिना किसी मामले को सुनना उस आदेश को अमान्य बना देता है?
सुप्रीम कोर्ट का फैसला और टिप्पणियां
सुप्रीम कोर्ट ने GRSE Ltd. की अपील स्वीकार कर ली और कलकत्ता उच्च न्यायालय के आदेश को केवल अधिकार क्षेत्र की कमी के आधार पर रद्द कर दिया, बिना अनुकंपा नियुक्ति के गुण-दोष पर विचार किए। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को कलकत्ता उच्च न्यायालय को लौटाते हुए निर्देश दिया कि मुख्य न्यायाधीश इसे उचित पीठ को सौंपें, और 25 फरवरी 2025 से छह महीने के भीतर पुनः सुनवाई पूरी करें।
महत्वपूर्ण टिप्पणियां
- अनधिकृत आदेश अमान्य हैं:
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि मुख्य न्यायाधीश द्वारा आवंटित न किए गए किसी मामले में आदेश पारित किया जाता है, तो वह आदेश न्यायिक रूप से शून्य (nullity) माना जाएगा।
- अदालत ने कहा: “यदि किसी पीठ को कोई मामला आवंटित नहीं किया गया है, तो उसका निर्णय अमान्य होगा।”
- 11 मार्च 2024 और 4 सितंबर 2024 की डिवीजन बेंचों के पास मुख्य न्यायाधीश की मंजूरी नहीं थी, इसलिए उनके आदेश कानूनन शून्य हैं।
- मुख्य न्यायाधीश की विशिष्ट शक्ति:
- सुप्रीम कोर्ट ने दोहराया कि मुख्य न्यायाधीश ही ‘रोस्टर के स्वामी’ हैं।
- न्यायालय ने Sohan Lal Baid v. State of West Bengal (1990), State of Rajasthan v. Prakash Chand (1998), और Campaign for Judicial Accountability and Reforms v. Union of India (2018) मामलों का हवाला देते हुए कहा: “मुख्य न्यायाधीश को ही रोस्टर निर्धारित करने का विशेषाधिकार है, और यह उनके साथी न्यायाधीशों के लिए बाध्यकारी है।”
- कलकत्ता उच्च न्यायालय के नियम 26 के अनुसार, केवल एकल न्यायाधीश ही मामले को डिवीजन बेंच को सौंप सकता है, मुख्य न्यायाधीश की स्वीकृति के बिना नहीं।
- सहमति से अधिकार क्षेत्र नहीं दिया जा सकता:
- सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कानूनी अधिकार क्षेत्र पक्षकारों की सहमति से नहीं दिया जा सकता।
- अदालत ने कहा: “पक्षकारों की सहमति से कोई ऐसा आदेश पारित नहीं किया जा सकता जो मुख्य न्यायाधीश द्वारा आवंटन नियमों का उल्लंघन करता हो।”
- न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान आवश्यक:
- सुप्रीम कोर्ट ने डिवीजन बेंच को फटकार लगाई कि उसने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर फैसला दिया, जबकि रोस्टर के अनुसार “Service (Group VI)” से जुड़े रिट याचिकाओं को केवल एकल न्यायाधीश ही सुन सकते थे।
- अदालत ने कहा: “जब रोस्टर में स्पष्ट व्यवस्था थी, तब भी डिवीजन बेंच ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर याचिका सुनी।”
सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देश
- कलकत्ता उच्च न्यायालय में पुनः सुनवाई:
- यह मामला फिर से कलकत्ता उच्च न्यायालय को सौंपा गया ताकि वह इसे सही प्रक्रिया के तहत सुने।
- मुख्य न्यायाधीश द्वारा उचित पीठ को आवंटन:
- सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश को निर्देश दिया कि वह इस मामले को उचित पीठ को सौंपें।
- नियुक्तियों पर रोक:
- GRSE Ltd. के वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता ने आश्वासन दिया कि हाईकोर्ट के अंतिम निर्णय तक कोई नई नियुक्ति नहीं की जाएगी, जिससे याचिकाकर्ताओं की चिंताओं को दूर किया जा सके।