अवैध खनन मामला: सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार की ‘टालमटोल’ रवैये पर जताई नाराज़गी, 1 दिसंबर तक मांगी विस्तृत रिपोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को ओडिशा सरकार पर अवैध खनन से जुड़ी बकाया राशि की वसूली में लापरवाही और ढिलाई बरतने को लेकर कड़ी नाराज़गी जताई। अदालत ने कहा कि राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि सरकारी राजस्व की चोरी न होने पाए। कोर्ट ने ओडिशा को 1 दिसंबर तक बेहतर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और अगली सुनवाई 3 दिसंबर को तय की।

यह मामला सुप्रीम कोर्ट के अगस्त 2017 के फैसले से जुड़ा है, जिसमें कोर्ट ने निर्देश दिया था कि जिन खनन पट्टाधारकों ने पर्यावरण स्वीकृति (Environmental Clearance) या वन स्वीकृति (Forest Clearance) के बिना या निर्धारित सीमा से अधिक खनन किया है, उनसे खनिज एवं खनन (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 की धारा 21(5) के तहत मुआवज़ा वसूला जाए। कोर्ट ने कहा था कि यह राशि 31 दिसंबर 2017 तक जमा की जानी चाहिए।

यह कार्यवाही एक 2014 में दाखिल जनहित याचिका से शुरू हुई थी, जिसमें ओडिशा में बड़े पैमाने पर अवैध खनन का मुद्दा उठाया गया था। तब से सुप्रीम कोर्ट ने बार-बार राज्य सरकार को करोड़ों रुपये की वसूली सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

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न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकार जिस “ढुलमुल” तरीके से काम कर रही है, वह अस्वीकार्य है।

पीठ ने टिप्पणी की —

“हम ओडिशा सरकार द्वारा डिफॉल्टर पट्टाधारकों से बकाया राशि की वसूली में अपनाए गए तरीके और ढंग पर गहरी असंतुष्टि व्यक्त करते हैं।”

अधिवक्ता प्रशांत भूषण, जो याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए, ने कहा कि राज्य सरकार सुप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेशों के बावजूद “बस समय निकाल रही है” और उसकी ताज़ा स्थिति रिपोर्ट से यह स्पष्ट है।

पीठ ने जब राज्य के महाधिवक्ता (Advocate General) से पूछा कि अब तक कौन-से ठोस कदम उठाए गए हैं, तो उन्होंने कुछ समय मांगा और कहा,

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“कृपया हमें कुछ उचित समय दें। मैं मुख्य सचिव और संबंधित अधिकारियों के साथ बैठक करूँगा और सुनिश्चित करूँगा कि जो भी कानूनी कार्रवाई ज़रूरी है, वह की जाए।”

सुप्रीम कोर्ट ने महाधिवक्ता के आश्वासन को दर्ज करते हुए 1 दिसंबर तक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 3 दिसंबर के लिए तय की।

ओडिशा सरकार द्वारा दायर हलफनामे में कहा गया है कि डिफॉल्टर पट्टाधारकों के खिलाफ “नियमित रूप से फॉलो-अप” किया जा रहा है और बकाया मुआवज़े की वसूली के लिए “गंभीर प्रयास” किए जा रहे हैं। राज्य ने यह भी बताया कि कुछ मामलों में वसूली आदेशों को ओडिशा उच्च न्यायालय ने निरस्त किया है।

पिछले वर्ष नवंबर 2024 में हुई सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने राज्य के 7 फरवरी 2024 के हलफनामे का उल्लेख किया था, जिसमें कहा गया था कि अब तक ₹2,745.77 करोड़ (ब्याज को छोड़कर) की राशि वसूल की जा चुकी है। अदालत ने उस समय भी टिप्पणी की थी कि यह राशि कुल देय बकाया की तुलना में बहुत कम है।

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न्यायालय की नवीनतम टिप्पणी से यह स्पष्ट है कि आठ वर्ष बाद भी राज्य सरकार ने वसूली की प्रक्रिया पूरी नहीं की है, जिससे सर्वोच्च न्यायालय ने गहरी चिंता व्यक्त की है।

“हम ओडिशा सरकार द्वारा डिफॉल्टर पट्टाधारकों से बकाया राशि की वसूली में अपनाए गए तरीके और ढंग पर गहरी असंतुष्टि व्यक्त करते हैं।”
सुप्रीम कोर्ट की पीठ: न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह

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