केरल में अस्पतालों की फीस पारदर्शिता पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई तय, हाईकोर्ट के दिशानिर्देशों को दी गई चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को उस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें केरल हाईकोर्ट द्वारा निजी अस्पतालों और क्लीनिकल संस्थानों के लिए जारी विस्तृत दिशानिर्देशों को चुनौती दी गई है। इन दिशानिर्देशों में अस्पतालों को अपनी सेवाओं और पैकेज दरों की सार्वजनिक रूप से जानकारी देने का निर्देश दिया गया था। शीर्ष अदालत ने अगली सुनवाई तक निजी अस्पताल संघ के सदस्यों के खिलाफ किसी भी प्रकार की दमनात्मक कार्रवाई पर रोक भी लगा दी है।

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केरल सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई 3 फरवरी के लिए तय की। यह याचिका केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन और हुसैन कोया थंगल द्वारा दायर की गई है। अदालत ने केंद्र सरकार को भी इस मामले में पक्षकार बनाने की अनुमति दी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से सहयोग करने को कहा।

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यह विवाद केरल हाईकोर्ट के 26 नवंबर के उस फैसले से जुड़ा है, जिसमें एकल न्यायाधीश के 23 जून के आदेश को बरकरार रखते हुए अपीलें खारिज कर दी गई थीं। एकल न्यायाधीश ने केरल क्लीनिकल एस्टैब्लिशमेंट्स (रजिस्ट्रेशन एंड रेगुलेशन) अधिनियम, 2018 और उससे जुड़े नियमों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज कर दिया था। इसके बाद डिवीजन बेंच ने अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए कई दिशानिर्देश जारी किए।

हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि यह अधिनियम एक कल्याणकारी कानून है और इसके लागू होने के कई वर्षों बाद भी इसके प्रावधानों का पालन न होना चिंताजनक है। अदालत ने टिप्पणी की थी कि यदि अंतरिम राहत न दी गई होती, तो नियमों के पालन में लापरवाही के लिए भारी लागत लगाई जा सकती थी, क्योंकि इससे राज्य के नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों और कानून के तहत मिलने वाले लाभों से वंचित किया गया।

दिशानिर्देशों के तहत सभी क्लीनिकल संस्थानों को रिसेप्शन या एडमिशन डेस्क और अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर, मलयालम और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में, उपलब्ध सेवाओं और आमतौर पर की जाने वाली प्रक्रियाओं की बेसलाइन और पैकेज दरें प्रदर्शित करने का निर्देश दिया गया। साथ ही यह भी स्पष्ट करने को कहा गया कि किसी अप्रत्याशित जटिलता या अतिरिक्त प्रक्रिया का खर्च अलग से दर्शाया जाएगा।

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इसके अलावा, हर अस्पताल में शिकायत निवारण डेस्क या हेल्पलाइन स्थापित करना अनिवार्य किया गया है। प्रत्येक शिकायत को एक विशिष्ट संदर्भ संख्या के साथ दर्ज कर तुरंत एसएमएस, व्हाट्सऐप या लिखित रूप में उसकी रसीद देने का निर्देश भी दिया गया। अस्पतालों को यह भी सुनिश्चित करने को कहा गया कि उनकी दर सूची, ब्रोशर और वेबसाइट पर दी गई जानकारी अद्यतन रहे और किसी भी बदलाव की तारीख स्पष्ट रूप से अंकित हो।

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हाईकोर्ट ने चेतावनी दी थी कि इन दिशानिर्देशों का पालन न करने पर अधिनियम के तहत कार्रवाई की जा सकती है, जिसमें पंजीकरण निलंबित या रद्द करना और जुर्माना लगाना शामिल है। साथ ही मरीजों के पास अन्य कानूनी उपाय भी खुले रहेंगे। अदालत ने अपने फैसले को गरिमापूर्ण, नैतिक और समान चिकित्सा सेवा के अधिकार की पुनः पुष्टि बताया था।

सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान यह भी स्पष्ट किया कि केरल प्राइवेट हॉस्पिटल्स एसोसिएशन के सदस्य अधिनियम की धारा 19 के तहत पंजीकरण की प्रक्रिया जारी रखेंगे। अब इस मामले में शीर्ष अदालत की अगली सुनवाई में यह तय होगा कि हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशानिर्देशों की वैधता और दायरा क्या होगा, और उनका निजी अस्पतालों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।

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