सुप्रीम कोर्ट: टेंडर पात्रता के लिए ज्वाइंट वेंचर (JV) का अनुभव मान्य, जब तक कि स्पष्ट रूप से मना न किया गया हो

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि किसी टेंडर (निविदा) में पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria) पूरा करने के लिए ठेकेदार द्वारा ‘ज्वाइंट वेंचर’ (Joint Venture) के भागीदार के रूप में प्राप्त अनुभव को मान्य माना जाना चाहिए, बशर्ते कि टेंडर नोटिस (NIT) में इसे बाहर रखने की कोई स्पष्ट शर्त न हो। शीर्ष अदालत ने छत्तीसगढ़ लोक निर्माण विभाग (PWD) द्वारा एक बिडर (Bidder) को तकनीकी आधार पर अयोग्य घोषित करने के फैसले को रद्द कर दिया, जिसका अनुभव प्रमाण पत्र एक ज्वाइंट वेंचर पार्टनर के रूप में किए गए कार्य से संबंधित था।

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मेसर्स सरगुजा ब्रिक्स इंडस्ट्रीज कंपनी द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया। मामले का मुख्य कानूनी मुद्दा यह था कि क्या एक टेंडरर (निविदाकर्ता) सरकारी टेंडर में “प्राइम कॉन्ट्रैक्टर” (Prime Contractor) की पात्रता शर्तों को पूरा करने के लिए ज्वाइंट वेंचर के भागीदार के रूप में अपने पिछले कार्य अनुभव का उपयोग कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्पष्ट निषेध के अभाव में, ज्वाइंट वेंचर पार्टनर के आनुपातिक अनुभव (Proportionate Experience) पर विचार किया जाना अनिवार्य है। कोर्ट ने बिडर को अयोग्य ठहराने के निर्णय को “मनमाना और अनुचित” करार दिया और इसे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन माना।

मामले की पृष्ठभूमि (Background)

8 जनवरी 2025 को, मुख्य अभियंता (केंद्रीय निविदा सेल), लोक निर्माण विभाग, नया रायपुर (प्रतिवादी संख्या 3) ने निविदा सूचना (NIT No. 246/TC/24-25) जारी की थी। यह टेंडर छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले में ग्राम रामगढ़ से ग्राम कोटाडोल तक सड़क निर्माण के लिए था, जिसकी अनुमानित लागत 4521.56 लाख रुपये (लगभग 45.21 करोड़ रुपये) थी।

प्री-क्वालिफिकेशन दस्तावेज के क्लॉज 1(b) में पात्रता मानदंड निर्धारित किए गए थे, जिसके अनुसार:

“अनुबंध के आवंटन के लिए अर्हता प्राप्त करने हेतु, प्रत्येक प्राइम कॉन्ट्रैक्टर (निविदाकर्ता) को अपने नाम (in its name) पर पिछले पांच वर्षों में… वित्तीय प्रस्ताव जमा करने की तिथि तक अनुबंध की संभावित राशि के 50 प्रतिशत मूल्य के बराबर कम से कम एक समान कार्य संतोषजनक ढंग से पूरा करना अनिवार्य है…”

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अपीलकर्ता, मेसर्स सरगुजा ब्रिक्स इंडस्ट्रीज कंपनी ने अपना टेंडर जमा किया। हालांकि, 3 मार्च 2025 को विभाग ने कमियों की सूचना दी और 19 मार्च 2025 को अपीलकर्ता को तकनीकी मूल्यांकन के चरण में अयोग्य घोषित कर दिया। विभाग का तर्क था कि अपीलकर्ता द्वारा प्रस्तुत अनुभव प्रमाण पत्र एक ज्वाइंट वेंचर (JV) के माध्यम से किए गए कार्य का था, और दूसरा व्यक्तिगत कार्य प्रमाण पत्र आवश्यक वित्तीय मूल्य से कम का था।

अपीलकर्ता ने स्पष्ट किया था कि ज्वाइंट वेंचर (MPSBI-JV) में उसकी 49% हिस्सेदारी थी और उसका आनुपातिक हिस्सा आवश्यक मूल्य से अधिक था, लेकिन विभाग ने इसे स्वीकार नहीं किया। इसके बाद अपीलकर्ता ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाईकोर्ट ने 4 अप्रैल 2025 को यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि वह प्राधिकरण द्वारा निर्धारित शर्तों की बारीकियों में नहीं जा सकता और निर्णय प्रक्रिया में कोई दुर्भावना नहीं पाई गई। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा।

पक्षों की दलीलें (Arguments)

अपीलकर्ता का पक्ष

अपीलकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सुश्री पूजा मेहरा सहगल ने तर्क दिया कि उनकी मुवक्किल कंपनी पात्रता मानदंडों को पूरा करती है:

  • अपीलकर्ता ‘MPSBI-JV’ नामक ज्वाइंट वेंचर में 49% की भागीदार थी, जबकि दूसरे भागीदार मेसर्स मोहन पोद्दार के पास 51% हिस्सेदारी थी।
  • जेवी (JV) द्वारा पूरा किया गया कुल कार्य 4904.09 लाख रुपये का था।
  • अपीलकर्ता का 49% हिस्सा 2404.00 लाख रुपये बनता है, जो वर्तमान टेंडर की 50% आवश्यकता (2261.00 लाख रुपये) से काफी अधिक है।
  • उन्होंने न्यू होराइजन्स लिमिटेड बनाम भारत संघ (1995) मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए तर्क दिया कि ज्वाइंट वेंचर के एक घटक को उसके आनुपातिक अनुभव का लाभ मिलने का अधिकार है।
  • यह भी दलील दी गई कि टेंडर नोटिस (NIT) में ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि ज्वाइंट वेंचर के अनुभव पर विचार नहीं किया जाएगा।

प्रतिवादी (राज्य सरकार) का पक्ष

छत्तीसगढ़ राज्य की ओर से अतिरिक्त महाधिवक्ता श्री विश्वजीत दुबे ने हाईकोर्ट के आदेश का बचाव किया:

  • उन्होंने तर्क दिया कि NIT में स्पष्ट रूप से “each prime contractor in the same name and style” (प्रत्येक मुख्य ठेकेदार उसी नाम और शैली में) वाक्यांश का उपयोग किया गया है। इसका अर्थ है कि निविदाकर्ता के पास अपने स्वयं के नाम पर अनुभव होना चाहिए, न कि जेवी के सदस्य के रूप में।
  • तर्क दिया गया कि ज्वाइंट वेंचर एक अलग कानूनी इकाई है और इसके अनुभव को स्वतंत्र बोली लगाने के लिए अलग-अलग सदस्यों में विभाजित नहीं किया जा सकता।
  • उन्होंने एफकॉन्स इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड और भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि निविदा जारी करने वाला प्राधिकरण अपने दस्तावेजों का सबसे अच्छा न्यायाधीश होता है और जब तक कोई स्पष्ट मनमानापन न हो, कोर्ट को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
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कोर्ट का विश्लेषण और टिप्पणियाँ (Analysis)

जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने मामले का विस्तार से विश्लेषण किया।

‘प्राइम कॉन्ट्रैक्टर’ की व्याख्या

कोर्ट ने नोट किया कि NIT में “प्राइम कॉन्ट्रैक्टर” शब्द को परिभाषित नहीं किया गया था। सामान्य समझ (Common parlance) का परीक्षण लागू करते हुए, कोर्ट ने कहा:

“NIT के संदर्भ में ‘प्राइम कॉन्ट्रैक्टर’ का अर्थ वह निविदाकर्ता होगा जिसने टेंडर जमा किया है। यदि एक से अधिक ठेकेदार मिलकर बोली लगा रहे हैं, तो इसका अर्थ वह ठेकेदार होगा जो अनुबंध प्रस्ताव के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है।”

ज्वाइंट वेंचर के अनुभव पर

सुप्रीम कोर्ट ने न्यू होराइजन्स लिमिटेड (1995) के फैसले का हवाला दिया, जिसमें स्थापित किया गया था कि ज्वाइंट वेंचर लाभ और जोखिम साझा करने वाले व्यक्तियों का एक संघ है। कोर्ट ने कहा कि जेवी का अनुभव अनिवार्य रूप से उसके घटकों (constituents) का अनुभव होता है।

“एक ज्वाइंट वेंचर के संबंध में, इसके अनुभव का मतलब केवल इसके घटकों का अनुभव हो सकता है… इस पर विचार न करना निर्णय को मनमाना और तर्कहीन बना देता है।”

स्पष्ट बहिष्कार (Explicit Exclusion) का अभाव

कोर्ट के तर्क में एक महत्वपूर्ण कारक यह था कि NIT में जेवी अनुभव के उपयोग को प्रतिबंधित करने वाला कोई क्लॉज नहीं था। कोर्ट ने कहा:

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“NIT या प्री-क्वालिफिकेशन दस्तावेज का अवलोकन करने पर, हमें ऐसी कोई शर्त नहीं मिलती जिसमें कहा गया हो कि ज्वाइंट वेंचर के सदस्य के रूप में पिछले अनुभव पर विचार नहीं किया जाएगा। इस प्रकार, ज्वाइंट वेंचर या साझेदारी में ठेकेदार द्वारा प्राप्त कार्य अनुभव का कोई विशिष्ट या स्पष्ट बहिष्कार नहीं है।”

स्पष्टता और मनमानापन

रिलायंस एनर्जी लिमिटेड (2007) मामले का हवाला देते हुए, पीठ ने जोर दिया कि टेंडर की शर्तें “कानूनी निश्चितता” (legal certainty) के साथ होनी चाहिए।

“हमारा स्पष्ट मत है कि पात्रता मानदंड स्पष्ट और संदिग्धता से परे होने चाहिए। अन्यथा, यह राज्य द्वारा शक्ति के मनमाने प्रयोग को जन्म दे सकता है, जिससे ऐसे निविदाकर्ता को अयोग्य घोषित किया जा सकता है जो अन्यथा पात्रता मानदंडों को पूरा करता हो।”

निर्णय (Decision)

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि ज्वाइंट वेंचर में अपीलकर्ता के आनुपातिक अनुभव पर विचार न करके उसे अयोग्य घोषित करने का प्रतिवादियों का निर्णय “तर्कहीनता से ग्रस्त है, जिसके कारण मनमाना निर्णय लिया गया।”

कोर्ट ने निम्नलिखित आदेश पारित किए:

  1. प्रतिवादी संख्या 3 द्वारा अपीलकर्ता को अयोग्य घोषित करने वाले 19.03.2025 के निर्णय को रद्द किया गया।
  2. छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के 04.04.2025 के फैसले को भी रद्द कर दिया गया।
  3. प्रतिवादियों को निर्देश दिया गया कि वे “ज्वाइंट वेंचर MPSBI-JV के सदस्य के रूप में अपीलकर्ता के अनुभव प्रमाण पत्र को स्वीकार करते हुए उसके मामले पर पुनर्विचार करें।”
  4. अपील स्वीकार की गई।

केस का विवरण (Case Details):

  • केस टाइटल: मेसर्स सरगुजा ब्रिक्स इंडस्ट्रीज कंपनी बनाम छत्तीसगढ़ राज्य और अन्य
  • केस नंबर: सिविल अपील संख्या 14859 / 2025 (SLP (Civil) No. 10039 / 2025 से उद्भूत)
  • बेंच: जस्टिस मनोज मिश्रा और जस्टिस उज्जल भुइयां
  • अपीलकर्ता के वकील: सुश्री पूजा मेहरा सहगल (वरिष्ठ अधिवक्ता)
  • प्रतिवादी के वकील: श्री विश्वजीत दुबे (अतिरिक्त महाधिवक्ता)

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