सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को पश्चिम बंगाल सरकार की उस पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसने 3 अप्रैल के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की थी। इस फैसले में 25,753 शिक्षकों और गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्तियाँ रद्द कर दी गई थीं। शीर्ष अदालत ने पूरी भर्ती प्रक्रिया को “दूषित और भ्रष्ट” बताते हुए कहा कि इसे दोबारा खोलने का कोई औचित्य नहीं है।
न्यायमूर्ति संजय कुमार और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा,
“ये पुनर्विचार याचिकाएँ वस्तुतः पूरे मामले की पुनः सुनवाई की मांग करती हैं, जबकि सभी तथ्य और कानूनी पहलुओं की पहले ही व्यापक रूप से समीक्षा हो चुकी है। अतः इन पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है।”
पीठ ने यह भी स्पष्ट किया कि 3 अप्रैल का निर्णय विस्तृत बहस के बाद दिया गया था। अदालत ने पाया कि पश्चिम बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन (SSC) ने मूल OMR शीट्स या उनकी प्रतियां सुरक्षित नहीं रखीं। इन त्रुटियों और अनियमितताओं को छिपाने से सत्यापन असंभव हो गया और यह साबित हो गया कि भर्ती प्रक्रिया पूरी तरह से समझौता कर चुकी थी।

पीठ ने कहा,
“पूरी चयन प्रक्रिया को निरस्त करना आवश्यक था ताकि चयन प्रक्रिया की पवित्रता और शुचिता बनी रहे। यह किसी भी प्रकार की खामियों से मुक्त होनी चाहिए।”
अदालत ने माना कि इससे कुछ निर्दोष अभ्यर्थियों को पीड़ा होगी, लेकिन स्पष्ट किया कि चयन प्रक्रिया की शुद्धता को बनाए रखना सर्वोपरि है।
अदालत ने अपने अप्रैल के आदेश को दोहराया जिसमें कुछ कर्मचारियों को आंशिक राहत दी गई थी—विशेषकर वे जो पहले अन्य सरकारी विभागों या स्वायत्त निकायों में कार्यरत थे। हालांकि उनकी नियुक्तियाँ रद्द रहीं, लेकिन उन्हें तीन महीने के भीतर अपने पुराने कार्यस्थल पर लौटने का अवसर दिया गया।
यह विवाद वर्ष 2016 की भर्ती से जुड़ा है जब पश्चिम बंगाल एसएससी ने 24,640 पदों के लिए लगभग 23 लाख आवेदन प्राप्त किए थे। लेकिन OMR शीट्स में छेड़छाड़ और “रैंक-जंपिंग” जैसी गड़बड़ियों के कारण नियुक्तियों की संख्या बढ़कर 25,753 हो गई।
कलकत्ता हाईकोर्ट ने अप्रैल 2024 में इन नियुक्तियों को रद्द करते हुए बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी की ओर इशारा किया था और दोषी अभ्यर्थियों से वेतन की वसूली का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस आदेश को पहले ही बरकरार रखा था और मंगलवार का निर्णय राज्य सरकार और अन्य पक्षकारों की पुनर्विचार याचिकाओं पर अंतिम मुहर है।