योगी सरकार की बर्खास्तगी की मांग कर रहे याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने जमकर फटकार लगाते हुए कहा कि याचिका बिना किसी रिसर्च के दाखिल की गई है। मामले से याचिकाकर्ता का कोई संबंध भी नही है।
तमिलनाडु राज्य के रहने वाले सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता सी आर जया सुकिंन ने याचिका दाखिल कर उत्तरप्रदेश को अपराध का केंद्र बताते हुए कहा था कि नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की जनवरी 2020 में जारी रिपोर्ट के अनुसार यूपी में हर दो घंटे में बलात्कार का एक मामला दर्ज होता है। प्रत्येक 90 मिनट में बच्चों के साथ अपराध होता है। मुस्लिम और दलित लोग वहां सुरक्षित नही है। राज्य की इतनी गंभीर स्थिति के बावजूद केंद्र सरकार मौन है। इसपर सुप्रीम कोर्ट दखल देते हुए केंद्र सरकार से कहे कि संविधान के आर्टिकल 356 के तहत यूपी सरकार को बर्खास्त कर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाए।
चीफ जस्टिस एस ए बोवड़े की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने याचिकाकर्ता से पूछा की क्या आपने दूसरे राज्यों को लेकर भी कोई रिसर्च की है? जिस पर याची ने हाँ का जबाब दिया। इस पर पीठ ने पूछा कि यह बात आपकी याचिका में कहाँ लिखी है? इस पर याची ने कोई साफ जवाब न देते हुए कहा कि देश के कुल अपराध का 30 फीसदी अपराध यूपी में होता है।
कोर्ट ने आगे याची जया सुकिंन से पूछा कि यह याचिका आपने क्यों दाखिल की है। आपका कौन सा मौलिक अधिकार मामले में प्रभावित हो रहा है। जिस पर वकील ने जवाब दिया कि मैं भारत का एक नागरिक हूँ इसलिए कोर्ट के समक्ष इस मसले को रखा। इस पर कोर्ट ने कहा कि बिना किसी रिसर्च के याचिका दाखिल कर वह कोर्ट का समय बर्बाद कर रहे हैं।
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याचिकाकर्ता ने इसके बावजूद भी जिरह की कोशिश की इस पर उन्हें रोकते हुए चीफ जस्टिस ने कहा कि यदि आपने इसके आगे बहस की तो हम आप पर हर्जाना लगाएंगे। कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए याची शांत हो गए जिसके बाद कोर्ट ने याचिका खारिज कर दी।