सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि कंपनियों को दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) के तहत ‘पीड़ित’ माना जा सकता है और वे आपराधिक मामलों, विशेषकर बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) उल्लंघनों से जुड़े मामलों में दोषमुक्ति के खिलाफ अपील दायर करने की हकदार हैं।
न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने एशियन पेंट्स द्वारा दायर अपील को स्वीकार करते हुए राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया, जिसमें कंपनी की अपील को यह कहते हुए खारिज कर दिया गया था कि वह दोषमुक्ति के खिलाफ अपील दायर करने के लिए अधिकृत नहीं है। मामला आरोपी राम बाबू से जुड़ा था, जो कथित रूप से एशियन पेंट्स के नाम से नकली पेंट उत्पाद बेचता पाया गया था।
कोर्ट ने यह अहम सवाल उठाया कि क्या एक कंपनी CrPC की धारा 2(wa) और धारा 372 के अपवाद प्रावधान के तहत ‘पीड़ित’ की परिभाषा में आ सकती है और क्या वह दोषमुक्ति के खिलाफ स्वतंत्र रूप से अपील कर सकती है। सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि ‘पीड़ित’ शब्द में प्राकृतिक व्यक्ति (व्यक्ति) के साथ-साथ कृत्रिम व्यक्ति (जैसे कंपनी) भी शामिल हैं, जिन्हें किसी अपराध के कारण हानि या चोट पहुंची हो।

न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने कहा, “वर्तमान मामले में कोई दो राय नहीं हो सकती कि नकली उत्पादों की बिक्री के कारण सबसे अधिक नुकसान अपीलकर्ता को ही हुआ है। अगर आम जनता ऐसे उत्पादों को एशियन पेंट्स के असली उत्पाद समझकर खरीदे, तो इससे कंपनी को आर्थिक नुकसान के साथ-साथ ब्रांड की प्रतिष्ठा को भी आघात पहुंचेगा।”
यह मामला तब शुरू हुआ जब एशियन पेंट्स ने नकली उत्पादों पर नजर रखने के लिए एक IPR कंसल्टेंसी फर्म की सेवाएं लीं। फरवरी 2016 में की गई एक बाजार जांच के दौरान राजस्थान के टुंगा में गणपति ट्रेडर्स नामक दुकान पर एशियन पेंट्स जैसे ट्रेडमार्क वाले 12 नकली पेंट बकेट पाए गए, जो आरोपी राम बाबू के स्वामित्व में थी। पुलिस ने बाद में इन बकेट्स को जब्त किया।
हालांकि ट्रायल के बाद राम बाबू को बरी कर दिया गया और राजस्थान हाईकोर्ट ने कंपनी की अपील यह कहते हुए खारिज कर दी कि केवल मूल शिकायतकर्ता—अर्थात पुलिस—ही ऐसी अपील कर सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस रुख से असहमति जताते हुए कहा, “हाईकोर्ट का यह निष्कर्ष कि अपीलकर्ता अपील नहीं कर सकता, CrPC की धारा 372 के अपवाद प्रावधान को पूरी तरह निष्प्रभावी बना देता है।” कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि ब्रांड की छवि को नुकसान और संभावित आर्थिक हानि के कारण कंपनी को ‘पीड़ित’ माना जाना चाहिए।