सुप्रीम कोर्ट ने 24 जुलाई 2025 को दिए गए एक अहम फैसले में यह स्पष्ट किया कि यदि विभागीय निर्णय को तकनीकी या प्रक्रियागत आधार पर रद्द किया गया हो, तो इससे उसी मामले में दर्ज आपराधिक शिकायत निराधार नहीं हो जाती। मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने M/s रिमझिम इस्पात लिमिटेड और अन्य द्वारा दायर आपराधिक अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने केंद्रीय उत्पाद शुल्क अधिनियम, 1944 के तहत चल रही आपराधिक कार्यवाही से मुक्त किए जाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि विभागीय कार्यवाही और आपराधिक अभियोजन दो स्वतंत्र प्रक्रियाएं हैं, और यदि विभागीय मामला दोबारा विचार के लिए लौटाया गया हो तो उसे दोषमुक्ति नहीं माना जा सकता।
पृष्ठभूमि
यह मामला 22 नवंबर 2007 को M/s रिमझिम इस्पात लिमिटेड के परिसर में की गई तलाशी से शुरू हुआ, जिसके बाद केंद्रीय उत्पाद शुल्क विभाग ने दो शो-कॉज़ नोटिस जारी किए।
पहला नोटिस 16 मई 2008 को जारी हुआ, जिसमें गुप्त निर्माण और उत्पाद शुल्क से बचने के लिए वस्तुओं को छुपाकर हटाने का आरोप था। यह कार्यवाही अतिरिक्त आयुक्त, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, कानपुर द्वारा समाप्त कर दी गई, जिसे बाद में आयुक्त (अपील) ने भी बरकरार रखा।

दूसरा नोटिस 6 मार्च 2009 को कंपनी, उसके निदेशक योगेश अग्रवाल और उससे जुड़ी फर्म जूही एलॉयज लिमिटेड के विरुद्ध जारी हुआ, जिसमें ₹6.68 करोड़ से अधिक शुल्क की चोरी का आरोप था। इसमें 31 मार्च 2011 को केंद्रीय उत्पाद शुल्क आयुक्त, कानपुर ने शुल्क वसूली का आदेश दिया और निदेशक पर ₹25 लाख का जुर्माना भी लगाया।
अपीलकर्ताओं ने इस आदेश को CESTAT, नई दिल्ली में चुनौती दी। 25 फरवरी 2013 को CESTAT ने इसे प्रक्रियागत आधार पर रद्द कर दिया और मामला पुनः विचार के लिए लौटा दिया, बिना किसी मेरिट पर राय दिए।
बाद में, इसी आदेश के आधार पर डीजीसीईआई ने अभियोजन की अनुमति दी और विशेष मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, कानपुर नगर के समक्ष एक आपराधिक शिकायत (मामला संख्या 841/2014) दाखिल की गई।
अपीलकर्ताओं ने पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट में कार्यवाही रद्द करने की याचिका दाखिल की, जिसे यह कहते हुए खारिज कर दिया गया कि उन्हें ट्रायल कोर्ट में डिस्चार्ज की मांग करनी चाहिए। ट्रायल कोर्ट ने 9 अक्टूबर 2015 को उनकी डिस्चार्ज अर्जी खारिज कर दी। इसके खिलाफ दाखिल पुनरीक्षण याचिका भी 5 फरवरी 2016 को खारिज हो गई, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की गई।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से:
वरिष्ठ अधिवक्ता ने दलील दी कि आपराधिक शिकायत का आधार बना विभागीय आदेश पहले ही रद्द हो चुका है और बाद में पुनर्मूल्यांकन आदेश भी हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था, इसलिए अभियोजन का कोई वैध आधार नहीं बचा।
यह भी तर्क दिया गया कि ट्रायल कोर्ट ने सीआरपीसी की धारा 245(1) और 245(2) में अंतर किए बिना, शिकायत दाखिल होने के बाद के साक्ष्यों पर भी विचार किया। उन्होंने Ajoy Kumar Ghose बनाम राज्य झारखंड का हवाला देते हुए कहा कि धारा 245(2) के तहत केवल शिकायत की सामग्री देखी जानी चाहिए थी।
उन्होंने राज्य तमिलनाडु बनाम आर. साउंडिरारासु का हवाला देते हुए कहा कि जब कोई वैध साक्ष्य मौजूद नहीं है, तो मुकदमा चलाना अनुच्छेद 21 का उल्लंघन होगा।
उत्तरदाताओं की ओर से:
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि विभागीय और आपराधिक कार्यवाहियां समानांतर रूप से चल सकती हैं और एक-दूसरे पर निर्भर नहीं होतीं। उन्होंने राधेश्याम केजरीवाल बनाम पश्चिम बंगाल राज्य मामले पर भरोसा किया।
उन्होंने एयर कस्टम्स ऑफिसर बनाम प्रमोद कुमार धमीजा का हवाला देते हुए कहा कि जब विभागीय कार्यवाही मेरिट पर समाप्त नहीं हुई हो, तो आपराधिक कार्यवाही को रद्द करना गलत है। उन्होंने कहा कि शिकायत स्वतंत्र जांच रिपोर्ट पर आधारित है और अभियोजन के लिए पर्याप्त प्रथम दृष्टया आधार मौजूद है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय
न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह द्वारा लिखे गए निर्णय में कोर्ट ने कहा:
शिकायत का आधार:
“शिकायत की सामग्री से स्पष्ट है कि 31.03.2011 के आदेश पर कोई निर्भरता नहीं है; इसे केवल तथ्यों की कड़ी को पूर्ण करने के लिए उद्धृत किया गया है… तलाशी के दौरान सामने आई अनियमितताएं और जांच रिपोर्ट की सामग्री प्रथम दृष्टया आरोपों की पुष्टि के लिए पर्याप्त हैं।”
प्रक्रियागत आधार पर पुनः विचार बनाम दोषमुक्ति:
“तकनीकी या प्रक्रियागत आधार पर दोबारा सुनवाई का निर्देश, मेरिट पर दोषमुक्ति के समकक्ष नहीं माना जा सकता, विशेषकर जब स्पष्ट रूप से कहा गया हो कि मेरिट पर विचार नहीं किया गया है।”
समानांतर कार्यवाहियां:
कोर्ट ने हाईकोर्ट के राधेश्याम केजरीवाल पर भरोसे को सही ठहराया और कहा कि अपीलकर्ताओं की दलील गलत धारणा पर आधारित थी कि शिकायत केवल रद्द आदेश पर आधारित थी।
चार्ज निराधार नहीं:
कोर्ट ने कहा कि यह दावा कि चार्ज “निराधार” है, गलत आधार पर किया गया, क्योंकि विभागीय आदेश मेरिट पर नहीं रद्द किए गए थे।
डिस्चार्ज की दलीलें:
कोर्ट ने पाया कि अपीलकर्ताओं की आपत्तियां निचली अदालत में कभी उठाई ही नहीं गई थीं। ट्रायल कोर्ट ने शिकायत की सामग्री के आधार पर वैधानिक प्रक्रिया का पालन किया।
अंत में कोर्ट ने कहा:
“हम भारत सरकार की ओर से प्रस्तुत दलीलों से सहमत हैं और अपील को खारिज करते हैं।”
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह टिप्पणियां केवल इस अपील के निपटारे के लिए हैं और ट्रायल कोर्ट में विचाराधीन मामले के मेरिट पर इनका कोई प्रभाव नहीं होगा।