सुप्रीम कोर्ट में देशभर की बार एसोसिएशनों को सुदृढ़ करने के लिए दिशा-निर्देश तय करने की प्रक्रिया के तहत सोमवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ अधिवक्ता सिराजुद्दीन ने वकीलों और न्यायाधीशों के बीच बढ़ते अनौपचारिक मेल-जोल को लेकर गंभीर चिंता जताई।
यह मामला पहले मद्रास बार एसोसिएशन के खिलाफ पक्षपात और अभिजात्य व्यवहार के आरोपों से जुड़ा था, लेकिन अब यह व्यापक रूप से देशभर की बार एसोसिएशनों के ढांचे और कामकाज से संबंधित मुद्दों की ओर बढ़ गया है।
उन्होंने न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष कहा, जजों को बर्थडे पार्टी में बुलाया जा रहा है! हर हफ्ते कम से कम दो पार्टियां, यह अनावश्यक मेल-जोल है, जिसमे जज अपना समय बर्बाद कर रहे हैं और इससे जनता में गलत संदेश जाता है।

भारत में न्यायिक आचरण को नियंत्रित करने वाला नैतिक ढाँचा, जैसा कि ‘न्यायिक जीवन के मूल्यों का पुनर्कथन’ (1999) में अभिव्यक्त किया गया है, न्यायाधीशों को अधिवक्ताओं के साथ घनिष्ठ व्यक्तिगत संबंध बनाने से स्पष्ट रूप से हतोत्साहित करता है। यह निषेध विशेष रूप से उन वकीलों के लिए ज़ोर दिया गया है जो उनके समक्ष नियमित रूप से उपस्थित होते हैं, ताकि किसी भी प्रकार के पक्षपात की धारणा को रोका जा सके।
यह सिद्धांत केवल भारतीय न्यायपालिका तक ही सीमित नहीं है, बल्कि न्यायिक औचित्य पर वैश्विक सहमति को दर्शाता है। ‘न्यायिक आचरण के बैंगलोर सिद्धांत’ और ‘संयुक्त राज्य अमेरिका के न्यायाधीशों के लिए आचार संहिता’ सहित अंतर्राष्ट्रीय दस्तावेजों में स्पष्ट चेतावनियाँ दी गई हैं। ये दस्तावेज न्यायाधीशों को ऐसे सामाजिक संगठनों में शामिल होने से सावधान करते हैं जो “अनुचितता का आभास” पैदा कर सकते हैं और इस प्रकार न्यायिक कार्यालय की ईमानदारी में जनता के विश्वास को कम कर सकते हैं।
बार एसोसिएशनों के गठन पर कानूनी शून्यता की ओर इशारा
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि कई राज्यों में दर्जनों बार एसोसिएशन हैं, जिनमें से कुछ में तो केवल 10–15 सदस्य ही हैं। उन्होंने पूछा, “क्या अधिवक्ता अधिनियम के तहत ऐसा कोई प्रावधान है जिसके तहत बार काउंसिल या फिर केंद्र या राज्य सरकार को बार एसोसिएशन के गठन का अधिकार हो?”
इस पर बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) के उपाध्यक्ष वरिष्ठ अधिवक्ता एस. प्रभाकरण ने बताया कि यदि किसी बार एसोसिएशन में 200–300 से अधिक सदस्य होते हैं तो वह राज्य बार काउंसिल से मान्यता प्राप्त करने के लिए आवेदन करता है। निरीक्षण के बाद पंजीकरण दिया जाता है और तभी उन्हें राज्य सरकार से कल्याणकारी लाभ मिलते हैं।
हालांकि, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि अधिवक्ता अधिनियम में बार एसोसिएशन के गठन और संचालन को विनियमित करने के लिए स्पष्ट प्रावधान नहीं हैं। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्यवश यह एक ग्रे एरिया है, एक वैक्यूम है, जिसे दूर करने की जरूरत है।
अधिवक्ताओं की योग्यता पर समय-समय पर मूल्यांकन का सुझाव
न्यायालय द्वारा नियुक्त अमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता के. परमेश्वर ने जब स्वीकार किया कि एक नियामक शून्यता है, तब न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने पूछा कि क्या बार एसोसिएशनों की मान्यता राज्य बार काउंसिल द्वारा होनी चाहिए या क्षेत्रीय उच्च न्यायालय द्वारा।
उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि वकीलों की योग्यता का मूल्यांकन समय-समय पर किया जाना चाहिए।