सुप्रीम कोर्ट ने जमानत आदेश के खिलाफ अपील पर विचार के लिए सिद्धांतों को स्पष्ट किया 

सुप्रीम कोर्ट ने 2021 में हुई हत्या के एक मामले में ओलंपियन पहलवान सुशील कुमार को मिली जमानत को रद्द करते हुए, यह स्पष्ट किया है कि उच्च अदालतें जमानत आदेश के खिलाफ अपील पर विचार करते समय किन सिद्धांतों को अपनाएं। न्यायमूर्ति संजय करोल और न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्र की पीठ ने कहा कि दिल्ली हाई कोर्ट का जमानत देने का आदेश त्रुटिपूर्ण था, क्योंकि उसने कई महत्वपूर्ण कारकों पर विचार नहीं किया। फैसले में अदालत ने जमानत मामलों में अपीलीय समीक्षा के दायरे पर स्थापित कानून का संक्षेप में सार प्रस्तुत किया।

जमानत अपील पर विचार के सिद्धांत

सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई पूर्व निर्णयों, जिनमें कल्याण चंद्र सरकार बनाम राजेश रंजन और Y बनाम राजस्थान राज्य शामिल हैं, का हवाला देते हुए अपीलीय अदालतों के लिए निम्नलिखित सिद्धांत बताए—

  1. रद्द करने से भिन्न: जमानत आदेश के खिलाफ अपील, जमानत रद्द करने की अर्जी से अलग होती है। अपील में मूल आदेश की वैधता की जांच होती है, जबकि रद्द करने की अर्जी आम तौर पर जमानत मिलने के बाद आरोपी के आचरण से जुड़ी होती है।
  2. गवाही के गुण-दोष पर निर्णय नहीं: अपील सुनने वाली अदालत को अभियोजन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्यों का विस्तार से विश्लेषण नहीं करना चाहिए। साक्ष्यों की गुणवत्ता पर निर्णय मुकदमे के दौरान होना चाहिए, न कि जमानत चरण में।
  3. विचारशील आदेश: जमानत देने का आदेश स्पष्ट रूप से यह दर्शाए कि अदालत ने प्रासंगिक तथ्यों और सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में स्थापित कारकों पर विचार किया है।
  4. हस्तक्षेप के आधार: उच्च अदालत जमानत आदेश के खिलाफ अपील को केवल तभी स्वीकार कर सकती है जब आदेश में “विकृति, अवैधता, कानून के विपरीत होना, प्रासंगिक तथ्यों की अनदेखी (जैसे अपराध की गंभीरता और अपराध के प्रभाव)” जैसी कमियां पाई जाएं।
  5. बाद का आचरण अप्रासंगिक: आरोपी का जमानत मिलने के बाद का आचरण, जमानत आदेश के खिलाफ अपील में विचार योग्य नहीं है। ऐसे मामले अलग से जमानत रद्द करने की अर्जी में उठाए जाने चाहिए।
  6. प्रतिशोध का माध्यम नहीं: जमानत आदेश के खिलाफ अपील को प्रतिशोध के हथियार के रूप में इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और इसे केवल स्थापित कानूनी आधारों तक सीमित रखना चाहिए।
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वर्तमान मामले में सिद्धांतों का प्रयोग

इन सिद्धांतों को लागू करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि दिल्ली हाई कोर्ट ने “त्रुटिपूर्ण तरीके से आरोपी को जमानत देने का आदेश पारित किया”। पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट ने कई प्रासंगिक तथ्यों पर विचार नहीं किया, जो हस्तक्षेप के योग्य थे।

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अदालत ने नोट किया कि एफआईआर दर्ज होने के बाद आरोपी फरार हो गया था, जिसके चलते गैर-जमानती वारंट जारी हुए और उसकी गिरफ्तारी पर नकद इनाम घोषित किया गया। फैसले में कहा गया, “हाई कोर्ट को इस महत्वपूर्ण तथ्य को अपने विचार में शामिल करना चाहिए था।”

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता पर भी ध्यान दिया, जिसमें “राष्ट्रीय राजधानी को आपसी रंजिश निपटाने के लिए अपराध का अखाड़ा बना दिया गया” और आरोपी के सामाजिक प्रभाव का भी उल्लेख किया। अदालत ने कहा, “निःसंदेह, आरोपी एक प्रतिष्ठित पहलवान और ओलंपियन है… इसमें कोई संदेह नहीं कि उसका समाज पर प्रभाव है। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह गवाहों पर दबाव नहीं डालेगा या मुकदमे की कार्यवाही में देरी नहीं करेगा।”

अदालत ने राज्य के इस तर्क पर भी गौर किया कि अब तक दर्ज 35 गवाहों में से 28 मुकर गए हैं, जिसे अदालत ने “आरोपी द्वारा मुकदमे में हस्तक्षेप की संभावना को रेखांकित करने वाला” माना।

पृष्ठभूमि और अंतिम आदेश

यह मामला मई 2021 में नई दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में एक पहलवान सागर के कथित अपहरण और हत्या से संबंधित है। इस मामले में सुशील कुमार मुख्य आरोपी हैं।

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अपने विश्लेषण के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता अशोक धनकड़ की अपील को स्वीकार किया, हाई कोर्ट का जमानत आदेश रद्द किया और सुशील कुमार को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया।

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