सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र सरकार और प्रमुख विमानन नियामकों से उस याचिका पर जवाब मांगा है, जिसमें निजी एयरलाइनों द्वारा हवाई किराए और विभिन्न अतिरिक्त शुल्कों में “अप्रत्याशित उतार-चढ़ाव” को नियंत्रित करने के लिए बाध्यकारी नियम बनाने की मांग की गई है।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने केंद्र, नागर विमानन महानिदेशालय (DGCA) और भारतीय विमानपत्तन आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (AERA) को नोटिस जारी किया। मामले की सुनवाई चार सप्ताह बाद होगी।
यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता एस. लक्ष्मीनारायणन ने दायर की है, जिसमें हवाई यात्रा क्षेत्र में पारदर्शिता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र और मजबूत नियामक संस्था के गठन की भी मांग की गई है। वरिष्ठ अधिवक्ता रविंद्र श्रीवास्तव और अधिवक्ता चारू माथुर व अभिनव वर्मा याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए।
याचिका में कहा गया है कि निजी एयरलाइनों ने बिना किसी ठोस कारण के इकोनॉमी क्लास यात्रियों के लिए मुफ़्त चेक-इन बैगेज सीमा 25 किलो से घटाकर 15 किलो कर दी है, जिससे पहले शामिल सेवा को राजस्व बढ़ाने के साधन में बदल दिया गया है।
एकल-सामान चेक-इन नीति और बिना बैगेज वाले यात्रियों को किसी भी प्रकार की छूट न देने को भी मनमाना और भेदभावपूर्ण बताया गया है।
याचिका का कहना है कि इस समय किसी भी संस्था को एयरफेयर या ऐनसिलरी फीस की समीक्षा या सीमा तय करने का अधिकार नहीं है, जिसके कारण एयरलाइंस छिपे शुल्क, असंगत डायनेमिक प्राइसिंग और सेवाओं में मनमाने बदलाव के जरिए उपभोक्ताओं का शोषण कर रही हैं।
याचिकाकर्ता के अनुसार, हवाई किराए में अचानक बढ़ोतरी, खासकर त्योहारों, आपात स्थितियों या मौसम संबंधी बाधाओं के दौरान, गरीब और अंतिम समय पर टिकट लेने वाले यात्रियों को सबसे अधिक प्रभावित करती है।
यह “असमान अवसर और पहुँच” संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन कर रही है, क्योंकि अमीर यात्री पहले से टिकट बुक कर सकते हैं, जबकि कमजोर वर्ग महंगे ‘सर्ज प्राइस’ पर टिकट लेने को मजबूर होता है।
याचिका में कहा गया है कि एयरलाइंस के डायनेमिक प्राइसिंग एल्गोरिदम टिकट की कीमतों को कुछ ही घंटों में दोगुना-तिगुना कर देते हैं। इसमें महाकुंभ यात्रा के दौरान किराए में उछाल और पहलगाम आतंकी हमले के बाद बढ़ी कीमतों का उदाहरण दिया गया है।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गरिमा का अधिकार आपातकालीन परिवहन जैसी आवश्यक सेवाओं तक उचित और गैर-शोषणकारी मूल्य पर पहुंच को भी शामिल करता है, और संकट के दौरान मनमाने किराए इस अधिकार का हनन करते हैं।
- भारतीय वायुयान अधिनियम, 2024, विमान नियम, 1937 और संबंधित नागरिक उड्डयन आवश्यकताओं का सख्ती से पालन कराया जाए।
- घरेलू हवाई सेवाओं को आवश्यक सेवा घोषित किया जाए ताकि मुनाफाखोरी और भेदभावपूर्ण प्रथाओं पर रोक लगे।
- टैरिफ मॉनिटरिंग तंत्र लागू किया जाए और अत्यधिक ‘डायनेमिक प्राइसिंग’ के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो।
- इकोनॉमी यात्रियों के लिए 25 किलो मुफ्त बैगेज अलाउंस बहाल किया जाए या समान मुआवजा दिया जाए।
- हवाई किराए और उपभोक्ता संरक्षण के लिए स्वतंत्र, अर्द्ध-न्यायिक शक्तियों वाले आयोग के गठन पर केंद्र विचार करे।
सुप्रीम कोर्ट अब केंद्र और नियामक संस्थाओं के जवाब मिलने के बाद इस मामले की आगे की सुनवाई करेगा।




