सुप्रीम कोर्ट ने आर. शशिरेखा बनाम कर्नाटक राज्य एवं अन्य (क्रिमिनल अपील संख्या 2025, विशेष अनुमति याचिका (क्रि.) संख्या 14900/2024 से उत्पन्न) मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 306 के तहत आत्महत्या के लिए उकसावे का अपराध तभी सिद्ध हो सकता है जब कथित उकसावे और आत्महत्या के बीच “स्पष्ट संबंध” और “निकटता” हो।
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने आंशिक रूप से अपील स्वीकार की, जिसमें कर्नाटक हाईकोर्ट द्वारा धारा 306 के आरोप रद्द करने के निर्णय को बरकरार रखा, लेकिन धोखाधड़ी (धारा 420 IPC) से संबंधित कार्यवाही को पुनः बहाल कर दिया। यह निर्णय आत्महत्या से जुड़े आपराधिक मामलों में अदालतों द्वारा कारण और संबंध की व्याख्या में एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शन प्रदान करता है।
मामले की पृष्ठभूमि
यह मामला आर. शशिरेखा के पति की आत्महत्या से जुड़ा है, जो कि साउंडर्या कंस्ट्रक्शंस नामक बेंगलुरु स्थित फर्म के सह-संस्थापक और भागीदार थे। यह फर्म उन्होंने 1994 में प्रतिवादी संख्या 2 और 3 के साथ शुरू की थी। प्रतिवादी संख्या 4 फर्म का प्रबंधक था। 14 अप्रैल 2024 को शशिरेखा के पति अपने निवास पर छत से लटके पाए गए।

प्रारंभ में पुलिस ने इसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 174 के अंतर्गत एक अप्राकृतिक मृत्यु माना और UDR संख्या 15/2024 दर्ज कर मामला बंद कर दिया।
हालांकि, 22 मई 2024 को—पति की मृत्यु के 39 दिन बाद—शशिरेखा ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। उन्होंने दावा किया कि 18 मई को अपने पति की अलमारी साफ करते समय उन्हें उनके हस्तलिखित एक मृत्यु नोट मिला, जिसमें प्रतिवादी संख्या 2 और 3 पर 60 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी, चेक और दस्तावेजों पर जालसाजी, और कंपनी के निवेश का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया था।
उन्होंने आगे कहा कि उनके पति को मरने से एक सप्ताह पहले लगातार धमकी भरे फोन कॉल आ रहे थे, जिससे वे मानसिक रूप से परेशान थे और अंततः आत्महत्या के लिए मजबूर हो गए।
इस शिकायत के आधार पर पुलिस ने एफआईआर संख्या 172/2024 दर्ज की, जिसमें धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसावा), धारा 420 (धोखाधड़ी), धारा 506 (आपराधिक धमकी), तथा धारा 34 (सामान्य आशय) के तहत मामला दर्ज किया गया।
प्रतिवादियों ने एफआईआर रद्द कराने के लिए कर्नाटक हाईकोर्ट में धारा 482 CrPC के तहत याचिका दायर की। 3 सितंबर 2024 को एकल पीठ ने एफआईआर को पूरी तरह से खारिज कर दिया, जिसके खिलाफ शशिरेखा ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
मुख्य कानूनी मुद्दे
- धारा 306 IPC के तहत आत्महत्या के लिए उकसावा:
सुप्रीम कोर्ट ने विचार किया कि क्या FIR और मृत्यु नोट में उल्लिखित आरोपों से ऐसा प्रत्यक्ष और स्पष्ट उकसावा सिद्ध होता है, जिससे मृतक ने आत्महत्या की। - धोखाधड़ी के आरोप (धारा 420 IPC):
अदालत ने यह भी परखा कि क्या हाईकोर्ट द्वारा धोखाधड़ी के आरोपों को खारिज करना उचित था, जबकि जांच एजेंसी ने धोखाधड़ी और वित्तीय कदाचार के पर्याप्त प्रमाण एकत्रित करने का दावा किया है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय और प्रमुख टिप्पणियाँ
धारा 306 IPC के तहत उकसावे के मामले में:
न्यायमूर्ति बी.आर. गवई द्वारा लिखे गए निर्णय में कहा गया:
“इस तरह के मामलों में मूल सिद्धांत यह है कि अभियुक्त के कथित उकसावे और पीड़ित द्वारा आत्महत्या के बीच निकट और प्रत्यक्ष संबंध होना चाहिए।”
कोर्ट ने यह भी कहा कि शशिरेखा द्वारा शिकायत दर्ज करने में अत्यधिक विलंब हुआ, जो पति की मृत्यु के 39 दिन बाद किया गया।
“यदि मृतक को आत्महत्या से एक सप्ताह पहले धमकी दी जा रही थी, तो शिकायत तुरंत की जा सकती थी। यह स्पष्ट है कि ये आरोप बाद में बनाए गए प्रतीत होते हैं।”
कोर्ट ने प्रकाश बनाम महाराष्ट्र राज्य (2024 INSC 1020) का हवाला देते हुए कहा कि
“सिर्फ 48 घंटे की देरी भी उकसावे और आत्महत्या के बीच संबंध को तोड़ सकती है। यहां तो आरोपों और मृत्यु के बीच कोई स्पष्ट समयसीमा नहीं है।”
अतः कोर्ट ने धारा 306 के तहत लगाए गए आरोपों को खारिज करने के हाईकोर्ट के निर्णय को सही ठहराया।
धारा 420 IPC के तहत धोखाधड़ी के मामले में:
यहां सुप्रीम कोर्ट ने एक अलग दृष्टिकोण अपनाया और हाईकोर्ट की “सतही” समीक्षा पर नाराज़गी जताई।
हाईकोर्ट ने कहा था कि मृतक द्वारा जीवनकाल में शिकायत नहीं की गई थी, इसलिए मामला नहीं बनता।
परंतु सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब जांच एजेंसी ने स्पष्ट रूप से धोखाधड़ी और जालसाजी के साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं, तो उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
“यदि हाईकोर्ट यह मानता था कि जांच एजेंसी द्वारा एकत्रित सामग्री धारा 420 के अपराध को सिद्ध नहीं करती, तो उसे स्पष्ट कारण बताने चाहिए थे।”
अतः कोर्ट ने हाईकोर्ट का आदेश इस बिंदु पर रद्द कर दिया और ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह जांच और मुकदमे की प्रक्रिया जारी रखे। यदि प्रतिवादी साक्ष्य को अपर्याप्त मानते हैं, तो वे डिसचार्ज की मांग कर सकते हैं।
मामले का विवरण
- अपीलकर्ता: आर. शशिरेखा (वरिष्ठ अधिवक्ता श्री शांतकुमार वी. महाले द्वारा प्रतिनिधित्व)
- प्रतिवादी:
- राज्य कर्नाटक (श्री डी.एल. चिदानंद द्वारा प्रतिनिधित्व)
- प्रतिवादी संख्या 2 से 4: साउंडर्या कंस्ट्रक्शंस के भागीदार एवं प्रबंधक (वरिष्ठ अधिवक्ता श्री दामा शेषाद्रि नायडू द्वारा प्रतिनिधित्व)
- राज्य कर्नाटक (श्री डी.एल. चिदानंद द्वारा प्रतिनिधित्व)
- मामला संख्या: क्रिमिनल अपील 2025 (SLP (क्रि.) 14900/2024 से उत्पन्न)
- पीठ: न्यायमूर्ति बी.आर. गवई एवं न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह