‘स्टर्लिंग गवाह’ ऐसा हो जो पूरी तरह निष्कलंक और उच्च कोटि का हो: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट

छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने आपराधिक मामलों में ‘स्टर्लिंग गवाह’ की भूमिका को दोहराते हुए कहा है कि ऐसा गवाह पूरी तरह निष्कलंक और उच्च कोटि का होना चाहिए, जिसकी गवाही पर बिना किसी संदेह के विश्वास किया जा सके। यह टिप्पणी मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने सीआरए संख्या 1533/2023 में आरोपी की अपील को खारिज करते हुए की।

पृष्ठभूमि

यह अपील रोहित कालार नामक 29 वर्षीय युवक द्वारा दायर की गई थी, जो जिला खैरागढ़-छुईखदान-गंडई के ग्राम धोढ़ा निवासी है। उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 363 और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) की धारा 9(म)(उ)/10 के अंतर्गत दोषी ठहराया गया था। विशेष सत्र न्यायाधीश, खैरागढ़ ने विशेष सत्र प्रकरण संख्या 03/2022 में 26 मई 2023 को दोषसिद्धि और सजा सुनाई थी।

न्यायालय ने आरोपी को दोनों धाराओं के तहत पाँच-पाँच वर्ष के कठोर कारावास और ₹1000-₹1000 के अर्थदंड से दंडित किया था। दोनों सजाएं साथ-साथ चलने का आदेश दिया गया था।

मामले के तथ्य

प्रकरण के अनुसार, 28 नवंबर 2021 की शाम को पीड़िता की मां ने गंडई पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई थी कि उसकी लगभग ढाई वर्षीया बेटी अपने चाची के घर खेल रही थी। आरोपी रोहित कालार बच्ची को दो रुपये देकर कुछ खरीदने को कहकर गया और लगभग 30-45 मिनट बाद वापस आया और उसे अपने घर की ओर ले जाने लगा।

आरोपी को पड़ोसी रामसहायता वर्मा ने देखा कि वह और बच्ची दोनों अपने कपड़े उतार रहे थे। उन्होंने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए बच्ची को वापस घर पहुंचाया। इसके बाद मामला दर्ज किया गया और गवाही एवं साक्ष्य के आधार पर आरोप पत्र दाखिल किया गया।

पक्षकारों की दलीलें

अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने दलील दी कि पीड़िता के साथ कोई चिकित्सकीय परीक्षण नहीं हुआ और आरोपी को झूठा फंसाया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि आरोपी पहले से ही लगभग तीन वर्ष छह महीने की सजा भुगत चुका है, इसलिए सजा रद्द की जाए।

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राज्य की ओर से पैनल अधिवक्ता श्रीमती शुभा श्रीवास्तव ने अपील का विरोध किया और कहा कि प्रत्यक्षदर्शी गवाह की गवाही के आधार पर अपराध प्रमाणित हुआ है और निचली अदालत ने विधिवत विचार कर सजा दी है।

न्यायालय की टिप्पणियां

मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा ने इस मुद्दे को चिन्हित किया कि क्या पीड़िता के संबंधियों की गवाही पर्याप्त और विश्वसनीय है। सुप्रीम कोर्ट के Rai Sandeep @ Deenu बनाम NCT दिल्ली (2012) 8 SCC 21 के निर्णय का हवाला देते हुए उन्होंने कहा:

“स्टर्लिंग गवाह उच्च कोटि और निष्कलंक होना चाहिए, जिसकी गवाही को बिना किसी झिझक के स्वीकार किया जा सके।”

उन्होंने यह भी कहा कि State of H.P. v. Shree Kant Shekar और Shivasharanappa बनाम कर्नाटक राज्य जैसे मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि यदि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय हो, तो उसे अन्य समर्थन की आवश्यकता नहीं होती।

उन्होंने प्रत्यक्षदर्शी रामसहायता वर्मा (PW-1) की गवाही को “स्पष्ट और विश्वसनीय” बताया, जिसे पीड़िता की मां (PW-3) और जांच अधिकारी व्यासनारायण चुरेंद्र (PW-10) की गवाही से समर्थन प्राप्त था। साथ ही, पीड़िता की मां ने जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के माध्यम से न्यायालय में उपस्थित होकर आरोपी के विरुद्ध कड़ी आपत्ति जताई थी।

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निर्णय

मुख्य न्यायाधीश ने कहा:

“निचली अदालत द्वारा अभियुक्त को दोषसिद्ध करने में कोई त्रुटि या अवैधता नहीं है। अभियोजन पक्ष ने आरोपी के विरुद्ध अपराध को संदेह से परे प्रमाणित किया है।”

इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर विशेष सत्र न्यायाधीश, खैरागढ़ द्वारा सुनाई गई दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा।

मामले का शीर्षक: रोहित कालार बनाम छत्तीसगढ़ राज्य
मामला संख्या: सीआरए संख्या 1533 / 2023

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