उपभोक्ताओं के अधिकारों के संरक्षण के प्रति अदालतों की गंभीरता का एक ताजा उदाहरण उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में देखने को मिला है। यहाँ महज 1700 रुपये की चप्पल के विवाद में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक शोरूम मैनेजर के खिलाफ कड़ा रुख अपनाते हुए गैर-जमानती वारंट (NBW) जारी कर दिया है।
आयोग ने यह सख्त कदम उपभोक्ता फोरम के आदेशों की लगातार अवहेलना और ग्राहक को दोषपूर्ण सामान बेचने के बाद हर्जाना न देने के कारण उठाया है।
क्या है पूरा मामला?
यह विवाद वर्ष 2022 का है। सीतापुर के बट्सगंज निवासी आरिफ ने 17 मई 2022 को ट्रांसपोर्ट चौराहे के पास स्थित एक शोरूम से 1700 रुपये की एक जोड़ी चप्पल खरीदी थी। परिवादी का कहना है कि खरीदते समय शोरूम के मैनेजर ने चप्पल पर छह महीने की वारंटी का आश्वासन दिया था।
हालांकि, खरीद के महज एक महीने के भीतर ही चप्पल टूट गई और खराब हो गई। जब आरिफ ने इसकी शिकायत शोरूम मैनेजर से की, तो आरोप है कि मैनेजर ने न तो चप्पल बदली और न ही पैसे वापस किए। बल्कि, खराब चप्पल अपने पास जमा कर ली और ग्राहक को टालते रहे।
कानूनी कार्यवाही और आयोग का फैसला
थक-हारकर आरिफ ने 17 अक्टूबर 2022 को जिला उपभोक्ता फोरम का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने सेवा में कमी (Deficiency in Service) और अनुचित व्यापार व्यवहार का आरोप लगाते हुए परिवाद दायर किया।
सुनवाई के दौरान फोरम द्वारा नोटिस भेजे जाने के बावजूद शोरूम मैनेजर मोहम्मद उस्मान न तो पेश हुए और न ही उन्होंने अपना पक्ष रखा। इसके चलते फोरम ने एकपक्षीय कार्रवाई की।
8 जनवरी 2024 को आयोग ने उपभोक्ता के पक्ष में फैसला सुनाते हुए मैनेजर को निर्देश दिया कि वह:
- चप्पल की कीमत 1700 रुपये वापस करे।
- मानसिक प्रताड़ना के लिए 2500 रुपये का मुआवजा दे।
- वाद व्यय के रूप में 5000 रुपये का भुगतान करे।
इस प्रकार कुल 9200 रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया गया था।
आदेश की अवहेलना पर वारंट जारी
फैसले के बाद भी शोरूम मैनेजर ने आदेश का पालन नहीं किया और न ही धनराशि जमा की। इस पर परिवादी आरिफ ने इजराय (Execution) वाद दायर किया।
आदेशों की निरंतर नाफरमानी को गंभीरता से लेते हुए, जिला उपभोक्ता आयोग ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 की धारा 72 के तहत अपनी शक्तियों का प्रयोग किया। आयोग ने पुलिस अधीक्षक (SP), सीतापुर को निर्देश दिया है कि वह शोरूम मैनेजर मोहम्मद उस्मान को गिरफ्तार कर 2 जनवरी 2026 तक आयोग के समक्ष पेश करें।
यह मामला साफ करता है कि उपभोक्ता अदालतों के आदेशों की अनदेखी करना सेवा प्रदाताओं को भारी पड़ सकता है, चाहे मामला छोटी रकम का ही क्यों न हो।

