सिक्किम हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण (MACT) के आदेश को रद्द करते हुए यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को ₹21.89 लाख का मुआवजा मृत मज़दूर के माता-पिता को देने का निर्देश दिया है, जो अप्रैल 2023 में एक सड़क दुर्घटना में मारा गया था।
न्यायमूर्ति भास्कर राज प्रधान ने यह फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि मृतक कोई मुफ्त सवारी करने वाला नहीं था, बल्कि वह एक कामगार था, जिसे वाहन के बीमा कवरेज के तहत माना जाना चाहिए।
यह मामला 20 अप्रैल 2023 की दुर्घटना से संबंधित है, जब मृतक रोरथांग से बेरिंग (पूर्व सिक्किम) जा रहे वाहन में यात्रा कर रहा था। वाहन में रेत की बोरियां ले जाई जा रही थीं और मृतक को उन्हें उतारने के लिए दिहाड़ी मज़दूर के रूप में काम पर रखा गया था। इसी दौरान वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो गया।

मृतक के माता-पिता ने मोटर वाहन अधिनियम, 1988 की धारा 166 के तहत हाईकोर्ट में अपील दायर की थी, जिसमें MACT द्वारा मुआवजा खारिज किए जाने को चुनौती दी गई थी। MACT ने यह कहते हुए दावा ठुकरा दिया था कि मृतक ने केवल लिफ्ट ली थी और वह बीमा पॉलिसी के तहत कवर नहीं था।
हालाँकि, हाईकोर्ट ने पाया कि मृतक को पांच रेत की बोरियां उतारने के लिए दिहाड़ी मज़दूर के रूप में नियुक्त किया गया था, जो किसी घर की नाली की मरम्मत के लिए लाई गई थीं। वाहन मालिक ने भी स्वीकार किया था कि मृतक अक्सर छोटे-मोटे कामों में सहायता करता था। न्यायमूर्ति प्रधान ने कहा कि यह तथ्य मृतक को “कामगार” मानने के लिए पर्याप्त है।
न्यायालय ने कर्मचारियों के मुआवजा अधिनियम का हवाला देते हुए स्पष्ट किया कि “कामगार” की परिभाषा में चालक, क्लीनर के अलावा ऐसे लोग भी शामिल होते हैं जो वाहन से जुड़े कार्यों में लगे होते हैं। इसके अलावा, वाहन मालिक ने वर्कमैन लाइबिलिटी के लिए अतिरिक्त प्रीमियम भी भुगतान किया था, जिससे बीमा कवरेज मृतक पर लागू होता है।
बीमा कंपनी द्वारा प्रस्तुत उस दावे को कोर्ट ने खारिज कर दिया, जिसमें यह कहा गया था कि मृतक केवल एक ग्रैच्युटस पैसेंजर था क्योंकि वह वाहन चालक के गाँव का ही निवासी था। कोर्ट ने इसे अपर्याप्त और तर्कहीन ठहराया।
न्यायालय ने यह भी कहा कि दुर्घटना वाहन चालक की लापरवाही से हुई, जिससे वाहन मालिक विकेरियस रूप से जिम्मेदार ठहरता है।
कोर्ट ने ₹21.89 लाख को “उचित मुआवजा” बताते हुए आदेश दिया कि यह राशि 9 प्रतिशत वार्षिक ब्याज के साथ, दावा याचिका दायर किए जाने की तिथि से पीड़ित पक्ष को दी जाए।