इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति प्रवीण कुमार गिरी की खंडपीठ ने स्पष्ट किया है कि भले ही चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति का अवश्यम्भावी (इंडिफीजिबल) अधिकार प्राप्त नहीं है, लेकिन नियोक्ता भी भर्ती प्रक्रिया में मनमानी नहीं कर सकता।
यह टिप्पणी न्यायालय ने स्पेशल अपील संख्या 203 ऑफ 2025 (राजीव कुमार एवं 12 अन्य बनाम राज्य सरकार एवं अन्य) सहित अन्य सम्बद्ध अपीलों पर सुनवाई करते हुए की। इन अपीलों में एकल न्यायाधीश द्वारा 6 मार्च 2025 को याचिकाएं खारिज किए जाने को चुनौती दी गई थी। सम्बद्ध मामलों में स्पेशल अपील संख्या 248, 256, 260, 271, 300, 301, 302 तथा विशेष अपील (डिफेक्टिव) संख्या 265 ऑफ 2025 शामिल थीं।
मामले की पृष्ठभूमि

अपीलकर्ताओं ने विज्ञापन संख्या 1/2013 के तहत हुई भर्ती प्रक्रिया को चुनौती दी थी, जिसके तहत 5723 पदों के लिए विज्ञापन जारी हुआ था। हालांकि, चयन सूची केवल 4556 पदों के लिए तैयार की गई और शेष 1167 पदों के लिए कोई पैनल तैयार नहीं किया गया। अपीलकर्ताओं का आरोप था कि उन्हें मनमाने ढंग से नियुक्ति से वंचित कर दिया गया।
एकल न्यायाधीश ने यह कहते हुए याचिकाएं खारिज कर दी थीं कि विभिन्न कारणों से रिक्त पदों की संख्या में कमी आ गई थी।
पक्षकारों की दलीलें
अपीलकर्ताओं की ओर से यह तर्क दिया गया कि पदों की संख्या में की गई कटौती मनमानी थी और इसका रिकॉर्ड के उचित परीक्षण के बिना निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि आयोग और निदेशक ने पदों की संख्या घटाने का कोई उचित आधार प्रस्तुत नहीं किया।
वहीं, प्रतिवादी बोर्ड की ओर से श्री कुशमोंदेया शाही ने प्रस्तुत किया कि पदों की संख्या में कमी उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के अनुपालन में की गई थी, जो कि फुल बेंच के निर्णय प्रशांत कुमार कटियार बनाम राज्य सरकार एवं अन्य [2013 (1) एडीजे 523 (एफबी)] से उत्पन्न अपील में पारित हुए थे। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि ध्रुव नारायण सिंह बनाम राज्य सरकार (रिट याचिका संख्या 26307/2010, निर्णय दिनांक 22 मई 2012) में पारित निर्णय के अनुपालन में पुनर्निर्धारण के चलते लगभग 10-15% पद कम किए गए थे।
न्यायालय की टिप्पणियां और आदेश
खंडपीठ ने इस विधिक सिद्धांत को पुनः पुष्ट किया कि यद्यपि चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति का अवश्यम्भावी अधिकार नहीं होता, लेकिन नियोक्ता को निष्पक्ष और मनमुक्त होकर कार्य करना आवश्यक है। न्यायालय ने कहा:
“यह कानून स्थापित है कि चयनित अभ्यर्थी को नियुक्ति का अवश्यम्भावी अधिकार प्राप्त नहीं होता, फिर भी यह भी उतना ही स्थापित है कि नियोक्ता मनमाने ढंग से कार्य नहीं कर सकता।”
अपीलकर्ताओं की शिकायतों को ध्यान में रखते हुए, न्यायालय ने बोर्ड और निदेशक को निर्देश दिया कि वे सचिव स्तर से नीचे के नहीं किसी उत्तरदायी अधिकारी द्वारा शपथपत्र दाखिल कर यह स्पष्ट करें कि पदों की संख्या में किस आधार पर और कैसे कमी की गई।
अदालत ने मामले को 15 मई 2025 को अतिरिक्त कारण सूची में शीर्ष दस मामलों में सूचीबद्ध करने का आदेश दिया और निर्देशित किया कि आवश्यक शपथपत्र नियत तिथि तक दाखिल किया जाए।